1. अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक क्यों माना जाता है? स्पष्ट कीजिए। [ Why Aristotles is referred as a First Political Scientist? Clarify.] / 2. अरस्तु के क्रांति संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए। [ Describe Aristotle's theory of revolution.]

1. अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक क्यों माना जाता है? स्पष्ट कीजिए।  [ Why Aristotles is referred as a First Political Scientist? Clarify.]    /    2. अरस्तु के क्रांति संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।  [ Describe Aristotle's theory of revolution.]


 1. अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक क्यों माना जाता है? स्पष्ट कीजिए।

[ Why Aristotles is referred as a First Political Scientist? Clarify.]

                         अथवा

अरस्तु राजनीति विज्ञान का जनक है।" विवेचना कीजिए।

[ "Aristotle is a father of Political Science." Comment.]

     अरस्तु राजनीतिक शास्त्र के जनक के रूप में 

                        अथवा 

  अरस्तु प्रथम वैज्ञानिक राजनीतिक विचारक के रूप में

[ Aristotle as the First Scientific Political Thinker.]



 उत्तर - अरस्तू को आधुनिक राजनीतिक शास्त्र का जनक, प्रणेता या पितामह कहा जाता है। मैक्सी ने अरस्तु को 'प्रथम वैज्ञानिक विचारक' ( First Political Scientist ) कहा है। यह बातें इसलिए सही है कि अरस्तू ने ना केवल राजनीति शास्त्र को स्वतंत्र विषय का रूप दिया है, वरन् अध्ययन पद्धति के द्वारा उसे वैज्ञानिक रूप भी दिया है। यद्यपि अरस्तु का गुरु प्लेटो और प्लेटो का गुरु सुकरात था, परंतु प्लेटो व सुकरात को राजनीतिशास्त्र का जनक या वैज्ञानिक विचारक नहीं कहा जाता। कारण यह है कि उनके विचार अरस्तु की तरह व्यावहारिक और यथार्थवादी ना होकर सैद्धांतिक और कोरे आदर्शवादी है। प्लेटो ने सत्य के संबंध में जो धारणा बनाई है, वह काल्पनिक थी, उसने उसे तथ्यों की कसौटी पर नहीं कसा। प्लेटो ने अपने काल्पनिक सत्य को स्वयं सिद्ध माना। परंतु अरस्तु के साथ वह बात नहीं है, अरस्तु की अध्ययन पद्धति इतिहास व निरीक्षण पर आधारित थी। वह तुलनात्मक व वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करता था, इसलिए वह 'प्रथम वैज्ञानिक राजनीतिक विचारक' था।


       विज्ञान कल्पना पर आधारित नहीं है। विज्ञान के अंतर्गत परिस्थितियों का अध्ययन करके उससे संबंधित तथ्य निकाले जाते हैं, फिर उनका वर्गीकरण किया जाता है, अंत में कार्यक्रम के संबंध को लेकर सामान्य सिद्धांतों का निर्धारण किया जाता है। यही विधि वैज्ञानिक है और इसी का प्रयोग अरस्तु ने किया है। अरस्तू ने अपने समय के यूनान के 158 संविधान का तुलनात्मक और वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया। अरस्तु की अध्ययन-विधि के आधार इतिहास और पर्यवेक्षण थे, जिनकी प्लेटो ने सर्वथा उपेक्षा की है। इस संबंध में अरस्तु ने लिखा है कि "हम को स्मरण रखना चाहिए कि युग-युग के अनुभव की अवहेलना करना हमारे लिए कल्याणकारी नहीं हो सकता, यदि यह चीजें ( प्लेटो के आदर्शवादी या कल्पनावादी विचार ) हितकारी है तो यह पिछली पीढ़ी में अज्ञात नहीं रहता।"


अरस्तु के अग्र लिखित विचारों के कारण उसे 'प्रथम राजनीतिक विज्ञानिक' ( First Political Scientist )  कहा जा सकता है- 

1. आगमन पद्धति ( InductiveMethod ) - अरस्तु को मौलिकता उसके विचारों में नहीं, वरन् उसकी अध्ययन-पद्धति में है। उसने आगमन पद्धति को अपनाया है, जिसमें निरीक्षण और पर्यवेक्षण के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। बार्कर लिखा है कि "उसकी पद्धति का सार समस्त प्रासंगिक तथ्यों का पर्यवेक्षण या उसके अध्ययन का उद्देश्य, प्रत्येक मामले में, एक सामान्य सिद्धांत की खोज करना था।"


2. अनुभव-प्रधानता ( Empiricism ) - अरस्तु का अध्ययन और उसके निष्कर्ष अनुभव पर आधारित है। अरस्तु ने अपने आदर्श राज्य का चित्रण करने से पहले 158 संविधान ओं का अध्ययन किया था। इन्हीं संविधान ओं के अध्ययन पर उसने अपने ग्रंथ 'पॉलिटिक्स' में विभिन्न प्रकार के संविधान और शासन-प्रणालियों का वर्णन किया है। अनुभव बाद में यह मैकियावेली के नजदीक है। मैक्सलेयर ने लिखा है कि, "किसी ने या ठीक कहा है कि प्लेटो ने अपने समकालीन एथेन्स की भ्रष्ट राजनीति से तंग आकर आदर्श राज्य का आशय लिया, जबकि अरस्तु, प्लेटो तथा अन्य विचार को द्वारा चित्रित आदर्श से तंग आकर अनुभववादी पद्धति के ऊपर आधारित व्यवहारिक राजनीति की ओर झुका।"


3. यथार्थवाद ( Realism ) - अरस्तु का राजनीतिक चिंतन तथ्यों पर आधारित है, कल्पना ऊपर नहीं। जहां प्लेटो का विश्वास है कि ज्ञान युक्त व्यक्ति ही सत्य की खोज करता है, वहां अरस्तु के लिए सत्य वास्तविक जगत से भिंड नहीं। आदर्श का अलग से कोई रूप नहीं आदर्श की उत्पत्ति तो मौजूदा वस्तुओं से ही होती है। इसलिए राजनीति शास्त्र के सिद्धांत निर्धारित करने में अरस्तू ने इतिहास के महत्व को (परंपराओं व प्रथाओं) को पूर्णता स्वीकार किया।


4. तुलनात्मक पद्धति ( Comparative Method ) -  अरस्तु ने लगभग 158 संविधान ओं का तुलनात्मक अध्ययन किया था। अरस्तु ने इन संविधान ओं का विस्तृत अध्ययन व विश्लेषण करने के बाद कुछ निष्कर्ष निकाले हैं। अरस्तु ने इन तुलनात्मक अध्ययन के बाद राज्य के जन्म हुआ उसकी प्रकृति, संविधान की रचना, कानून की संप्रभुता, क्रांति आदि के संबंध में जो विचार प्रस्तुत किए हैं, उन्हें ठुकराया नहीं जा सकता।


5. राजनीति और नीति शास्त्र में पृथक्करण ( Separation between Politics and Ethics ) -  डॉ. वी. पी. वर्मा के शब्दों में, "अरस्तु ने नीति शास्त्र और राजनीति शास्त्र पर तथा ग्रंथों की रचना पर वैज्ञानिक विवेचन का मार्ग पुष्ट किया।" अरस्तू ने नीतिशास्त्र ( आचारशास्त्र ) को व्यक्तियों के चरणों को नियमित करने वाले शास्त्र पर सीमित रखा तथा राजनीति को सामूहिक या सामाजिक कल्याण का साधन बताया है। वह राजनीतिशास्त्र की जीवन के सभी विज्ञानों का स्वामी बताकर इसे 'सर्वोच्च विज्ञान' ( Master Science ) बना दिया है।

    डॉनिंग ने लिखा है कि राजनीतिक सिद्धांतों के इतिहास में अरस्तु की सबसे बड़ी महानता इस बात में निहित है कि उसने राजनीति को स्वतंत्र विज्ञान का रूप दिया है।"


6. सरकार के अंगो का निर्धारण ( Determination of Government's Organs ) - अरस्तु ने शासन-व्यवस्था के तीन अंगों-नीति निर्धारण, प्रशासकीय और न्यायालय का उल्लेख किया है। यह अंग आज क्रमश: व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के नाम से जाने जाते हैं। अरस्तु द्वारा इन तीनों अंगों में संगठन व कार्यों पर प्रकाश डालने का परिणाम 'शक्तिविभाजन के सिद्धांत' और 'नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत' के रूप में देखने को मिला है।


7. लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा ( Concept of Welfare State) - "राज्य का जन्म जीवन के लिए हुआ है और शुभ तथा सुखी जीवन के लिए वह जीवित है।" इस सिद्धांत का प्रतिपादन अरस्तु ने किया है, जिसने आधुनिक लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को जन्म दिया है।


8. अरस्तु का मध्य मार्ग ( Arietotle's Golden Mean ) - अरस्तु का मध्य मार्ग व विचार वर्तमान राजनीति के नियंत्रण और संतुलन के विचार का जनक है। अरस्तु ने प्रत्येक प्रकार की अति का विरोध किया है। कैटरीन के शब्दों में, "कन्फ्यूशियस के बाद विवेकपूर्ण दृष्टिकोण और मध्यम मार्ग का अरस्तु ही सबसे बड़ा प्रतिपादक है।"


9. अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठित करने वाली अन्य बातें - 

(I) अरस्तु ने राज्य का पूर्ण सिद्धांत वर्णन किया है। बार्कर के अनुसार, "अरस्तु के विचार ( राज्य संबंधी ) आधुनिकतम है, भले ही अरस्तू का राज्य केवल एक नगर-राज्य ही रहा हो।" अरस्तु ने ही सर्वप्रथम कहां है, "व्यक्ति एक राजनीतिक प्राणी है।"

(ii) अरस्तु ने नागरिकता को जो व्याख्या की है, वह राजनीति शास्त्र को उसी मौलिक तथा महत्वपूर्ण दिन है।

(iii) अरस्तु द्वारा प्रस्तुत संविधान ओं का वर्गीकरण उसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रतीक है। उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अरस्तू के विचार कल्पना पर आधारित नहीं है, अरस्तु का दृष्टिकोण वैज्ञानिक है। अरस्तू के विचार स्पष्ट तर्कसंगत और व्यवहार योग्य है। राजनीतिशास्त्र की वर्तमान स्वतंत्र स्थिति अरस्तु की ही देन है। वह प्लेटो की तरह नीति शास्त्र और राजनीति शास्त्र को एक ही विषय नहीं मानता है। इन्हीं सब बातों के कारण 'अरस्तु राजनीति शास्त्र का जनक' अथवा 'प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक है।' जैसा कि मैक्सी ने कहा है।




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2. अरस्तु के क्रांति संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।

[ Describe Aristotle's theory of revolution.]

                           अथवा

 "अरस्तु के अनुसार क्रांतियों में क्या कारण है? उनसे बचाव के क्या उपाय बताइए हैं?

[ What is according to Aristotle are the causes of revolution? What remedies has been suggested? ]

                         अथवा

  विभिन्न प्रकार के राज्यों में क्रांतियों के कारण एवं उन्हें रोकने के विषय में अरस्तु के विचारों की समीक्षा कीजिए ।

[  Explain the causes of revolution in different kinds of states and the remedies according to the Aristotle.]

                         अथवा

अरस्तु के संविधान ओं का वर्गीकरण सिद्धांत की समीक्षा कीजिए।

 [ Evaluate Aristotles theory of classification of constitution.]

 


उत्तर - अरस्तु के क्रांति संबंधी विचार - अरस्तु ने अपनी पुस्तक 'पॉलिटिक्स' के सातवें भाग में राज्य कांति और संविधान परिवर्तन संबंधी बातों की विवेचना की है। उसने क्रांति के कारणों उनके रोकने के उपायों आदि का वर्णन किया है। अरस्तु ने संविधान तथा शासन-सत्ता की होने वाले प्रत्येक परिवर्तन को क्रांति कहां है। उसकी क्रांति प्रत्येक परिवर्तन का नाम है।


अरस्तु के मतानुसार क्रांति - अरस्तु के मतानुसार क्रांति के निम्नलिखित टीम रूप है-

1. शासन-व्यवस्था का परिवर्तन - पहले से स्थापित शासन व्यवस्था की स्थान पर दूसरी शासन-व्यवस्था का आ जाना क्रांति है।

2. रूप सुधार - अरस्तु एक शासन-व्यवस्था के रूप सुधार को भी क्रांति कहता है। किसी शासन-व्यवस्था यह संविधान में कमी विश कर देना, उसमें घटा-बड़ी कर देना भी क्रांति ही है। उदाहरण के लिए, जनतंत्र के वर्तमान स्वरूप को कम अथवा अधिक करने की प्रक्रिया को भी क्रांति कहा गया है।

3. पदाधिकारियों का परिवर्तन - शासन के मूल रूप में परिवर्तन की बिना शासकीय पदाधिकारियों का भी परिवर्तन किया जाता है, तो उसे भी अरस्तु क्रांति कहता है।


 अरस्तु ने अपने जीवनकाल में यूनान में स्थिरता और परिवर्तनशीलता के दर्शन किए थे। निरंतर क्रांतियों के कारण यूनान के शासन में बहुत पतन हो गया था। यूनान का प्रत्येक नगर-राज्य विभिन्न शासन प्रणालियों का परीक्षण कर चुका है। धन अंतर तथा जनमत अधिकार तथा असंतुलित था। अरस्तु ने अपनी पुस्तक 'पॉलिटिक्स' में इसका विस्तार पूर्वक उल्लेख किया है, तथा बताया है कि इसके क्या कारण है और उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?


क्रांति के विशेष कारण-क्रांति के विशेष कारण निम्नलिखित है-

1. घृणा - जब समाज का धनिक वर्ग गरीबों से घृणा करने लगा है और उन्हें निजी दृष्टि से देखा जाता है तो सर्व भौमिक रूप से क्रांति के लिए जमीन तैयार होती है।

2. भय - भय व्यक्तियों को दो प्रकार से क्रांति के लिए प्रेरित करता है। पहले जो अपराध से बचना चाहते हैं और दूसरे, वे जो अन्याय का जवाब देना चाहते हैं।

3. प्रमाद और आलस्य - जब प्रमाद और आलस्य के कारण जनता अयोग्य व्यक्तियों को शासनारूढ़ कर देती है। वह सत्ता के प्रति निष्ठावान नहीं रहते हैं शक्ति संचय तथा सर्वात पूर्ति में लगे रहते हैं, तो क्रांति का उदय होता है।

4. अनुचित सम्मान - जब व्यक्तियों को अनुचित सम्मान प्राप्त होता है, तब क्रांति जन्म लेती है।

5. उच्चवर्गीय षड्यंत्र - जब उच्च वर्ग अन्य जनों को नीचा और हीन समझता है और स्वयं सत्ता प्राप्ति के षड्यंत्र में लगा जाता है, तो इस प्रकार संघर्ष बढ़ जाता है और क्रांति पनपती है।

6. विजातीय तत्व - जब राज्य में विकास करने वाले विजातीय तत्व समुदाय के साथ अपना भावात्मक संबंध स्थापित नहीं कर पाते, तो वे बाहरी तत्वों से साठगांठ करके क्रांति पैदा करते हैं।

7. छोटी-छोटी घटनाएं - कभी-कभी छोटी-छोटी घटनाएं भी क्रांति को जन्म देती है। एक बार सादूराकूज में कुलिनो के प्रदाय के कारण क्रांति हो गई थी।

8. संतुलित व्यवस्था - व्यवस्था का अधिक संतुलन भी क्रांति को पनपाता है। जब सामाजिक वर्गों में संतुलन रहता है तो उनमें परस्पर प्रतियोगिता विकसित होती रहती है। उनमें सत्ता हथियाने की होड़ लगती है जिसमें संघर्ष होता है।



     अरस्तु में सामान्य क्रांति के कारण :-


अरस्तु ने सामान्य क्रांति के कारणों का उल्लेख करने के बाद विभिन्न राज्यों में क्रांति के कारण बताए हैं, जो कि निम्नलिखित प्रकार से हैं-


1. प्रजातंत्र में क्रांति - जब प्रजातंत्र में नेतागण सीमा से अधिक हो जाते हैं तो प्रजातंत्र में क्रांति समीप दिखाई देने लगती है। जब जनता के प्रतिनिधि धनी को के हितों के विरुद्ध हो जाते हैं तो धनिक वर्ग अपने स्थानों की रक्षा के लिए क्रांति पर बैठता है। अरस्तु ने इस प्रकार की क्रांति के उदाहरण के लिए, 'क्रास' का नाम बताया है।


2. धनतंत्र में क्रांति - धनतंत्र क्रांति के कारण प्रजातंत्र से भिन्न होता है। जब एक खास सामंत का उदय होता है, जब वह अपनी सेना रखता है और युद्ध कालिया शक्ति कॉल (कभी भी) मैं अपनी सैनिक-शक्ति के आधार पर जनता की सहायता लेकर शासन पर अधिकार कर लेता है। सेना के बल पर इस प्रकार का शासन आता ही कहलाता है। इस शासन में नए और पुराने सामंतों में जब युद्ध होता है, तो कभी-कभी सेनापति जो शक्ति में दोनों प्रकार के मालिकों से अधिक होता है, दोनों की सत्ता छीन कर सैनिक शासन स्थापित कर लेता है।


3. कुलीनतंत्र में क्रांति - कुलीनतंत्र में क्रांति के कारण बताते हुए अरस्तु का कहना है कि शिक्षित वर्ग को अपनी योग्यता के आधार पर कुलीन तंत्र द्वारा कोई उचित पद या अधिकार प्राप्त नहीं होता है, तो वह क्रांति कर देते हैं।


4. स्वेच्छाचारी राजतंत्र में क्रांति - राज्य का सर्वे सर्वा एक राजा हो या राज्य का पूर्ण सत्ताधारी एक अधिनायक हो, दोनों स्वभाव से तराशा होते हैं। दोनों में क्रांति का कारण भी सम्मान होता है। शासन की निरंकुशता से तंग आकर जनता क्रांति पर बैठती है या फिर कोई दूसरा शासक अपने बाहुबल से एक राजा को उतारकर स्वयं राजा बन बैठता है।



        क्रांति को रोकने के लिए अरस्तु के सुझाव :-


1. कानून के प्रति आस्था - राज्य के नागरिकों को शिक्षा इस प्रकार की मिली चाहिए, जिससे वे कानून में आस्था रखकर उसके उल्लंघन का साहस न कर सकें। नागरिक क्रांतिकारियों का साथ ना दे तो क्रांति स्वयं ही असफल हो जाएगी।

2. शासन वर्ग पर नियंत्रण - योग्य तथा जागरूकता सक्रांति के शुरू होने से पहले ही उसे नष्ट कर देता है। शासक वर्ग को जनता से संपर्क स्थापित करके उसके भृम को दूर करना चाहिए। इस प्रकार जनहित को ध्यान में रखने वाला अधिकारी लोकप्रिय होकर क्रांति नहीं होने देगा।

3. महत्वकांक्षी नेताओं की देखभाल - कुछ महत्वकांक्षी नेताओं के आचरण पर ठीक प्रकार से नजर रखी जाए, उसका संपर्क जनता से बढ़ने दिया जाए, उनके झूठे प्रकार का खंडन किया जाए। इस प्रकार सावधान रहकर क्रांति को रोका जा सकता है।

4. राज्यअधिकारियों के शीघ्र तबादले - अरस्तु के अनुसार किसी भी राज्य अधिकारी को एक स्थान पर 6 माह से अधिक ना रुकने दिया जाए, क्योंकि अधिक समय तक एक ही स्थान पर रहने से वह अपना प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर पाकर सत्ता को उलट ने का षड्यंत्र करता है, क्रांति को जन्म देता है। इसलिए एक अधिकारी ना एक स्थान पर जम पाएगा और ना क्रांति का नेता बन सकेगा।

5. दो वर्गों का शासन - अरस्तु का ऐसा विश्वास था कि धनी व निर्धनों के बराबर-बराबर प्रतिनिधि लेकर शासन-कार्य उन्हें सौंप देना चाहिए मध्यम वर्ग का शासन भी क्रांति को होने से रोकता है।

6. नागरिकों को चेतावनियां - अरस्तु के अनुसार जनता को नए-नए खतरों की बात बताकर, भविष्य के संकटों से आतंकित करें तो जनता अपनी रक्षा के विषय में सोचेगी तथा उसके मस्तिष्क में क्रांति के बीज ही नहीं जामेंगे।

7. भ्रष्टाचार तथा अत्याचार की संपत्ति - शासन वर्ग पदलिप्सा, स्वार्थपरता और लाभ की प्रवृत्ति को छोड़कर भ्रष्टाचार और अत्याचार से दूर रहे तो क्रांति का होना बहुत कठिन हो जाएगा। समाज के सूखे व्यवस्था बनी रहेगी और क्रांति का भय दूर हो जाएगा।

8. निर्धनों के हितों की रक्षा - यदि धनिक, निर्धनों का शोषण ना करें और शासक वर्ग सदाचारी, ईमानदार तथा विश्वासपात्र रहे तो क्रांतिकारियों के राज्य में पैर नहीं जम सकतें हैं।

9. गुप्तचर विभाग - राजा को अपने शत्रुओं का पता गुप्त चरणों से लगाना चाहिए। जनता की दशा का ज्ञान भी वह गुप्त चरो से करता रहें और जनता के कष्टों को दूर करने का प्रबंध भी करता रहे। यदि राजा जनता को भौतिक सुखों से वंचित नहीं रखेगा तो जनता में क्रांति की भावना दूर हो जाएगी।

10. फूट का बीज बोना - यदि जनता राजा के विरुद्ध हो जाए तो राजा को जनता में फूट का बीज बो देना चाहिए। भारत में अंग्रेजों ने इस फूट के कारण ही काफी समय तक निरंकुश राज्य स्थापित किया।

11. अन्य उपाय - राजा को जनता के मस्तिष्क को किसी-न-किसी काम में जमाए रखना चाहिए। शासक जनता की धार्मिक भावना को उदारता रहे और ललित कलाओं का विकास करता रहे तो जनता क्रांति से दूर रहेगी। अचानक संकट आ जाने पर भी राजा को धैर्य नहीं खोना चाहिए।

12. शिक्षा - अरस्तु का कहना है कि शासन के अनुरूप जनता को शिक्षा मिलनी चाहिए।





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मुझे विश्वास है दोस्तों कि आपको यह पोस्ट1. अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक क्यों माना जाता है? स्पष्ट कीजिए।  [ Why Aristotles is referred as a First Political Scientist? Clarify.]    /    2. अरस्तु के क्रांति संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए।  [ Describe Aristotle's theory of revolution.] बहुत ज्यादा पसंद आया होगा। क्योंकि इस पोस्ट में अरस्तु की संपूर्ण जानकारी मौजूद है। तो आप सब से मैं बस यही गुजारिश करूंगा कि इस पोस्ट को ज्यादा-से-ज्यादा लोगों तक शेयर करें। ताकि यह जानकारी लोगों तक पहुंचे।


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