कथन शैली और उसकी विशेषता ( Narration style and it's character) कथन शैली के प्रकार (Types of narration style)

 कथन शैली और उसकी विशेषता ( Narration style and it's character)    कथन शैली के प्रकार (Types of narration style)



शैली - शैली मनुष्य की पहचान कही गई हैं। वह अपने भावों अथवा विचारों दूसरों तक संपर्क करने के लिए भाषा में अनेक प्रयोग करता है । उसकी यह इच्छा रहती है कि अपनी बात स्पष्ट एवं प्रभावी ढंग से दूसरों तक पहुंचा सके ।  मनुष्य द्वारा भाषा प्रयोग में उसकी यही इच्छा कार्य करती है भाषा के विविध प्रयोग परिस्थितियों और विषय वस्तु पर निर्भर करतेेहैं।

 


  शैली के सभी गुणों को समन्वित करने के उपरांत शैली के निम्नलिखित गुण माने जा सकते हैं -


 (1) सरलता - शैली विचारों की अभिव्यक्ति का एक ढंग है, उस रूप में लेखक को ऐसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए जिससे अर्थबोध सरलतापूर्वक हो सके । सरलता शैली का आवश्यक गुण है ।   

  (2)   स्वच्छता -  लेखक अपने भाव-विचार और अनुभूतियों की गुत्थियों को पाठक के सामने खोल कर रखता है । इस भाव-विचार और अनुभूतियों के प्रकाशन में स्वच्छता महत्वपूर्ण है ।  

 (3)  स्पष्टता -  जब तक शैली में स्पष्टता के गुण का अभाव रहेगा,लेखक अपने भाव और विचारों को पाठक के हृदय में नहीं उतार पाएगा । विचारों की स्पष्टता  और श्रोता दोनों को तन्मय बनाती है ।  उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि यह विचार उनके स्वयं के हैं ।   

 (4)   प्रभावोत्पादकता - लेखक की शैली में जब एक प्रभावोत्पादकता का अभाव होता है, तब तक उनके अन्य गुण, जैसे-सरलता, स्वच्छता ,और स्पष्टता उसकी रचना को प्रभावमय नहीं बना सकते ।प्रभावोत्पादकता के  इस गुण के अभाव में उसकी शैली प्रभाव शुभ ही मानी जायेगीं।

   (5) शिष्टता - लेखक की शैली में शिष्टता और सुरुचिमयता का गुण आवश्यक है । शैली में शिष्टता का अभाव पाठक की मन को विचलित कर देता है तथा लेखक के साथ पाठक की सहानुभूति उत्पन्न नहीं होती । सौंदर्य की उपासना की इस गुण का आधार है।

 (6)  ओजस्विता - ओजस्विता शैली का प्राण तत्व है । जिस प्रकार अग्नि अपनी जन शक्ति का परित्याग कर शून्य और निस प्राण हो जाती है, उसी प्रकार शैली भी आज के अभाव में निर्जीव और प्रभाव शून्य हो जाती है। 

 (7)  सजीवता - लेखक ने भाव और विचार इसी गुण के द्वारा मूर्तिमान होकर पाठ के अन्तरमन में सजीव चित्र उपस्थित कर देते हैं।  

(8)  प्रौढ़ता - प्रौढ़ता भी शैली का आवश्यक गुण है । इससे रचना की रचना में गंभीरता आती है । 

 (9)  लय - इस गुण से शैली में रमणीयता आती है। ध्वनि-लय और ताल-लय के रूप में किस के दो भेद किए जाते हैं । शैली में मधुर धनिया ध्वनियों की योजना से ले का जन्म होता है, जबकि ताल-लय गीतात्मक स्वरों का संचार है। इस प्रकार स्पष्ट है कि मैं भी शैली का आवश्यक गुण है।


कथन शैली के प्रकार (Types of narration style)


सुस्पष्ट एवं प्रभावी रूप से अपनी बात को दूसरे तक प्रेषित करने की कला को शैली कहते हैं। शैली शाम सामान्य कार्य 'पद्धति' है शैली से आशय किसी भी विधि, पद्धति, तरीका, ढंग, प्रणाली आदि से है।  कथन शैली के परिपेक्ष में इसका अर्थ बात कहने की पद्धति से लगाया जा सकता है।  कथन शैली अभिव्यक्ति का तरीका है।  प्रत्येक व्यक्ति के कहने का सब अपना एक तरीका होता है जिसे कथन शैली कहते हैं। 

 'कथन शैली' मानव के भावों विचारों को प्रकट करने का एक अपना तरीका होता है। विचारों का परिधान की शैली है संसार में जितने मनुष्य हैं,  उनके बाद कहने और बात करने का ढंग अलग अलग होता है, अर्थात स्थूल रूप से यह कहा जा सकता है कि संसार में जितने मनुष्य हैं उतनी तरह-तरह की शैलियां होती हैं यह कथन की शैली का तात्पर्य भाषा प्रयोग के ढंग से से ही है। 


साहित्यिक दृष्टि से कथन की मुख्यत: चार शैलियां होती हैं-   1. विवरणात्मक शैली 

 2.मूल्यांकन शैली  

3. व्याख्यात्मक शैली  

4. विचारात्मक शैली


(1) विवरणात्मक शैली - विवरणात्मक शैली में वक्ता अपनी तरफ से कोई बात नहीं कहता, बल्कि किसी घटना, वस्तु, परिस्थिति का यथार्थ प्रस्तुतीकरण करता है। इसमें वक्ता तटस्थ रहता हैं। अपना कोई अभिमत नहीं देता। वह जैसा दिखता है, सुनता है, वैसा विवरण प्रस्तुत करता है। वक्ता अपने कथन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों में प्रस्तुत कर सकता है। इस शैली को मनुष्य विशेषता तथ्यपरकता, सरल, भाषा, कर्मवाच्य की प्रधानता, व्यक्त की तटस्थता एवं भूतकालिक क्रिया रूपों का प्रयोग होता है।



(2) मूल्यांकन शैली - मूल्यांकन का अर्थ मूल का अंकन करने से है। किसी परिस्थिति, घटना, व्यक्ति, वस्तु को देखते सुनते ही मनुष्य की मूल्यांकन परख बुद्धि सक्रिय हो जाती है। तर्क की कसौटी पर कसकर समालोचनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करना मूल्यांकन परक शैली का प्रमुख लक्षण है। इस शैली में वैयक्तिकता की प्रधानता होती है। कारण-कार्य संबंध वाक्य एवं विधि निर्देश पर अक्षय अधिक होती है। इस शैली में प्रश्न आत्मक एवं तुलनात्मक वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। इस शैली की मुख्य पहचान लिया है कि इसमें - किंतु, परंतु, आदि, मगर, संपेक्ष में, निष्कर्षत: मेरा मत है कि, मेरी धारणा हैं, मेरी दृष्टि में, मैं समझता हूं कि जैसे वाक्यों का प्रयोग होता है।


(3)  व्याख्यात्मक शैली - सूत्र रूप से में लिखी हुई बातों को स्पष्ट करने के लिए व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया जाता है। व्याख्याकार का प्रयास होता है कि दुरुह  एवं अस्पष्ट विषय-वस्तु को इतना सरल कर दें कि वह सर्वाग्रही हो जाए।  किसी भी बात को अनेक प्रकार से अनेक दृष्टान्तों से के माध्यम से समझाने का प्रयास किया जाता है।  इस शैली में प्रयुक्त वाक्य  सुनिश्चित अर्थ वाले एवं सरल वाक्य होते हैं।  श्रृंखलाबद्ध रूप से व्याख्या के सूत्र एक दूसरे से जुड़े चले जाते हैं। 

 इस शैली में किसी भी काल को व्यक्त करने वाली क्रियाओं एवं कारण कार्य संबंध व्यक्त करने वालों करने वाले वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। इस शैली में अर्थात, अतएव, यदि मान लिया जाए, अतः, वर्ण, किंतु, परंतु आदि का प्रयोग किया जाता है।


(4)  विचारात्मक शैली - विषय वस्तु की गहराई में जाकर उसके विविध पक्षों पर तर्कपूर्ण विचार करना विचारात्मक शैली का प्रमुख लक्षण है।  इस शैली की विशेषता यह है कि इसमें तकनीकी शब्दावली एवं तकनीकी भाषा का प्रयोग किया जाता है  विषयानुकूल भाषा के प्रयोग के साथ ही विषयों में संबंध प्रतिपादन में बिल्कुल तटस्थ होते हैं, किंतु जब कला संबंधी विचार प्रस्तुत किए जा रहे हो तो वक्ता मुखर रहता है एवं अपना अभिमत भी प्रस्तुत करता है।  प्रमुख तथ्य को वाचक, पर्यायवाची, भाव छाया को व्यक्त करने वाले शब्द अथवा उसके लिए प्रयुक्त सर्वनाम का प्रयोग होता है।


मूल्यांकन शैली के प्रकार और विशेषता ( Mulyankan shili k prakar aur uski vishesta)


 उपयुक्त चारों प्रकारों की शैली का प्रयोग कला, विज्ञान, वाणिज्य एवं मानविकी के क्षेत्रों में किया जाता है। इन सभी शैलियों में सबसे ज्यादा मूल्यांकन शैली का प्रयोग किया जाता है तो चलिए हम जानते हैं कि मूल्यांकन शैली आखिर विस्तार में होती क्या है।


(क) आलोचनात्मक मूल्यांकनपरक कथन शैली - जहां किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या घटना का गुण-दोष के आधार पर मूल्यांकन किया जाए, वहां आज आलोचनात्मक मूल्यांकन परख कथन शैली होती है, जैसे - प्राकृतिक सुषमा और इतिहास की अनुपम धरोहर के लिए देशभर के विख्यात पर्यटन स्थलों में मांडव है, जहां आजकल मौज मस्ती के नाम पर मन मनचलों की आवांछित गतिविधियां बढ़ रही हैऔर सांस्कृतिक प्रदूषण फैल रहा है।  इससे पर्यटन विभाग की परेशानियां पर चिंता की लकीरें भले ही नहीं खींचे, पर स्थानीय नागरिक अपने गांव की छवि के प्रति चिंतित हो उठे हैं।‌ 

इस पर्यटन स्थल के नैसर्गिक सौंदर्य और प्राचीन विरासत को देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में सैलानी मांडव आते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों से मांडव के स्मारक एस गांव बन गए हैं  शराब खोरी पर्यटन की जरूरी रस्म हो रही है और छेड़छाड़ वहां उस श्रृंखला की घटना आम हो रही है।


(ख)  विचारात्मक मूल्यांकनपरक कथन शैली - जहां गंभीरतापूर्ण विचारों के माध्यम से मूल्यांकन किया जाए, वहां विचारात्मक मूल्यांकन पर पतंजलि होती है, जैसे -"प्रो. आर.जी.सक्सेना दहशत भरी उस घटना से उभरे नहीं है। हाल ही में नैनीताल से नई दिल्ली आते हुए उनकी बस में दुर्घटना उनकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। 5 लोगों की जान लेने वाली इस दुर्घटना में प्रो. सक्सेना उनकी पत्नी बेटी और उनके परिवार की एक बच्ची को गहरी शारीरिक चोट दी। 

शारीरिक चोटों में प्रौ.  सक्सेना देर-सवेर उबर जाएंगे पर उस मानसिक चोट से उभरने वरना उनके लिए संभव नहीं है, जो उस रात उन्हें लगी। दुर्घटना के तत्काल बाद ड्राइवर और कंडक्टर गायब हो गए। जिस कंपनी की वह गाड़ी थी, उसने दुर्घटनाग्रस्त यात्रियों की कोई सुध नहीं ली।"


(ग)  व्याख्यापरक मूल्यांकनपरक कथन शैली - जहां किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु अथवा घटना के संबंध में तथ्यात्मक चित्रण किया जाए या उससे संबंधित तथ्यों को प्रस्तुत किया जाए, वहां तथ्यात्मक मूल्यांकन पर कथन शैली होती है। जैसे - "जिन लोगों को ग्रहण का वास्तविक कारण नहीं मालूम है, उनके हृदय में ग्रहण को देखकर भय का संसार होना स्वाभाविक है। सन  1504 ईं की घटना है, जब अमेरिका को ढूंढ निकालने वाला कोलंबस भटकता-भटकता पश्चिमी द्वीप समूह में जा पहुंचा था। वहां पर निवासियों ने उसको पकड़ लिया था और उसकी हत्या करना चाहते थे।  उससे समय कोलंबस को एक अनोखी युक्ति सूझी।  

उसने यह ज्ञान उसे यह ज्ञात था कि इस वर्ष 1 मार्च को चंद्रग्रहण होगा।  उसने इसी ज्ञान के बल पर वहां के निवासियों को धमकी दी कि चंद्रमा के प्रकाश से वंचित कर देगा। इस कथन पर उन्होंने कुछ ध्यान नहीं दिया किंतु रात्रि को जब चंद्रमा के उदित होने के कुछ देर बाद ग्रहण लगना आरंभ हो गया तब तो वहां के निवासी अत्यधिक भयभीत होकर दौड़े-दौड़े आए और कोलंबस के पैरों पर गिरकर प्रार्थना करने लगे। कि वे उसकी सब इच्छाएं पूर्ण करके करने को तत्पर है। इस प्रकार कोलंबस अपनी तथा अपने साथियों की प्राण रक्षा कर सका।


(घ) भावनात्मक मूल्यांकनपरक कथन शैली - जहां कथनकर्ता भावावेश में भर जाता है, वहां भावनात्मक मूल्यांकनपरक कथन शैली होती हैं, जैसे - "गुरु को गोविंद से भी श्रेष्ठ और ऊंचा मान कर उसके आगे नतमस्तक होने की भावना और परंपरा, गुरु को गुरु दक्षिणा में अंगूठा काटकर दे देने के उदाहरण और आदर्श जहां की संस्कृति ने बड़े गर्व और आदर के साथ संजोकर रखे हो, वहां छात्रों द्वारा कॉलेज-कैंपस से प्रधान व्यापक पर किए गए पर पथराव या स्कूल के मैदान पर शिक्षिका के लिए सिनेमा के सस्ते चलाओ किस्म के गीत गाए जाने के बाकी यह सब कहने-सुनने में आऐं, तब शिक्षक ही नहीं कोई भी संवेदनशील व्यक्ति चिंता और सोच में पड़ जाता है और ऐसे में अधिक 'शिक्षक दिवस' सम्मान जैसे शब्द निरर्थक और खोखले लगने लगते हैं। आए दिन विद्यार्थी की उद्दंडता और अनुशासनहीनता झेलने वाले शिक्षक का जब एक दिन मंच पर बैठा कर सम्मान किया जाता है, तब शिष्य का गुरु के प्रति आदर और श्रद्धा का प्रतीक मानकर उसे दिए जाने वाले श्रीफल और दुशाला महज एक औपचारिकता और दिखावा लगने लगे हैं। 

मन और व्यवहार में जब गुरु के प्रति सम्मान की भावना ना हो, तब सिर्फ एक परिपाटी को निभाने भर के लिए प्रदर्शित किया गया सम्मान सार्थक लगेगा भी कैसे?"


(च) तार्किक मूल्यांकनपरक कथन शैली - जहां तर्क के आधार पर व्यक्ति, स्थान,  वस्तु या घटना के गुण-दोष चरित्र के लिए जायें, वहां तार्किक मूल्यांकनपरक कथन शैली होती है, जैसे - "लताजी की नजरों में सलिल दा (सलिल चौधरी) लोक संगीत के जीते-जागते सागर थे।  आशाजी को जब कभी वो गाने के लिए बुलाते, तो इस निमंत्रण को चुना चुनौती मानकर जाती थी। मुकेश को उनकी धुनों पर गाने का सदैव गर्म रहा है । अनिल विश्वास सी रामचंद्र तथा सचिन देव के प्रशंसक रहे, लेकिन लोकप्रिय संगीतकार ओ.पी.नैय्यर और संगीत शंकर जयकिशन उनकी नजर में महान नहीं थे।  नौशाद और जयशंकर जैसे शास्त्रीय धुन आधारित संगीतकार के बारे में उनकी एक सीमा तक ठीक थी। माटी की महक को अपनी धुनों में डालने डालने वाला एक संगीतकार जीवन के अंतिम दिनों में गुमनामी का जीवन जी रहा था।'


(छ) तुलनात्मक मूल्यांकनपरक कथा शैली - जहां दो या दो से अधिक व्यक्ति, वस्तु, स्थान या घटना की गुण-दोष के आधार पर तुलना की जाए जहां तुलनात्मक मूल्यांकन परक कथन-शैली होती हैं, जैसे - "जापान ने विश्वविद्यालयीन खेलों में फुटबॉल का खिताब जीतकर स्वर्ण पदकों की होड़ में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया। जापान की अब कुल 22 स्वर्ण पदक है, जबकि अमेरिका के 21 स्वर्ण पदक हासिल किए हैं। कुल पदकों में अमेरिका अब भी 63 पदों के साथ पिछले स्थान पर बना हुआ है। जापान के कुल 61 पदक हैं इनमें जापान और अमेरिका की तुलना है।


(ज) वैयक्तिक मूल्यांकनपरक कथन शैली - जहां किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या घटना का प्रशांत आत्मक मूल्यांकन किया जाऐ, वहां वैयक्तिकता मूल्यांकनपरक कथन शैली होती है, जैसे - "जर्मनी की स्टेफी ग्राफ ने स्पेन की आरांचा  सांचेज शिकारियों को हराकर फ्रेंच ओपन टेनिस प्रतियोगिता का महिला एकल खिताब चौथी बार जीत लिया है। इस जीत से ग्राफ में अनेक टेनिस कैरियर के अब तक 16 ग्रैंड स्लैम एकल खिताब पर कब्जा कर लिया है। पहली बार उन्होंने ग्रैंड स्लैम खिताब 1987 में जीता था।"



मुझे विश्वास हैं कि आपको ये पोस्ट काफ़ी रोचक और जानकारी से पूर्ण लगा होगा। इसलिए कृपया आप इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करें। भाषा/ कथन शैली की विशेषता और प्रकार। मूल्यांकन परक कथन शैली की विशेषता ।🙏🙏🙏

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