1. प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए। [ Evaluate plato's theory of communism.] / 2. प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए। [ Evaluate plato's theory of communism.]
1. प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए।
[ Evaluate plato's theory of communism.] / 2. प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए।
[ Evaluate plato's theory of communism.]
प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए।
[ Evaluate plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो के साम्यवाद सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
[ Describe plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो के साम्यवादी विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
[ Critically examine plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो के साम्यवाद का वर्णन कीजिए।
[Describe plato theory of communism.]
Or
प्लेटो की समाजवाद की योजना का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
[ Critically examine plato's communism.]
उत्तर :- प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में न्याय को शासन का आधार माना है। न्याय के लिए मानव मस्तिष्क में सुधार के लिए उसने शिक्षा के सिद्धांत का और सामाजिक वातावरण में सुधार के लिए साम्यवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उसने शासन और सैनिक वर्ग को स्वार्थ से मुक्त रखने के लिए संपत्ति तथा परिवार से वंचित रखा जिससे वह अपने कर्तव्य मार्ग से विचलित ना हो सके। यदि संरक्षण वर्ग ( शासन और सैनिक ) धन लोलुपता, स्वार्थ और पारिवारिक कार्यों में संलग्न रहेंगे तो वह निष्पक्ष भाव से शासन के कार्य कर सकेंगे। प्लेटो का साम्यवाद अपने में एक साध्य नहीं, अपितु एक साधन मात्र है। उसके साम्यवाद का मुख्य उद्देश्य आदर्श राज्य की स्थापना करना है। बार्कर के अनुसार, "संपूर्ण साम्यवाद का उद्देश्य है व्यक्तियों प्रत्येक ऐसी वस्तु से उन्मुक्त करना जो उसे राज्य के संगठन में अपना निश्चित स्थान प्राप्त करने में बाधा डालती है। इसका उद्देश्य उन स्थितियों को प्राप्त करना है। " दूसरे शब्दों में, उन अधिकारियों की प्रत्यय भूमि है जो राज्य की योजना में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए आवश्यक है। नैटिलिशिप के अनुसार, "प्लेटो का साम्यवाद शिक्षा द्वारा उत्पन्न की गई भावना एवं उसे नव-शक्तिदेने वाला पूरक यंत्र है।"
प्लेटो की साम्यवादी विचारधारा की पृष्ठभूमि।
प्लेटो का साम्यवादी सिद्धांत सर्वथा एक मौलिक सिद्धांत नहीं है। यह विचारधारा उससे पूर्व भी यूनान में प्रचलित थी। स्पार्टा मैं स्त्रियों को राज्य-हित के लिए उधार दिया जाता था। 7 वर्ष की आयु के बाद बच्चों को राज्य हित के लिए राज्य को सौंप दिया जाता था। राज्य ही इन बच्चों का संपूर्ण भारुड आता था। क्रीट नामक नगर-राज्य में सार्वजनिक अथवा सहकारी खेती की व्यवस्था थी। प्रसिद्ध दार्शनिक पाइथागोरस ने यह कह कर कि "मित्रों की संपत्ति पर सब का समान रूप से अधिकार होना चाहिए।" एक प्रकार के साम्यवादी सिद्धांत का समर्थन किया। प्लेटो की रचना से कई वर्ष पूर्व प्रसिद्ध विद्वान यूरोपाईडीज ने अपने ग्रंथ प्रोटो सलाल में स्त्रियों के सामने वाद का प्रतिपादन किया। प्लेटो ने उपयुक्त सब विचारों को संकलित करके अपने साम्यवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
प्लेटो के साम्यवाद के आधार
प्लेटो का साम्यवाद मुख्य रूप से तीन आधार पर स्थित है, जो कि निम्न प्रकार है-
1. मनोवैज्ञानिक आधार-प्लेटो ने मानव प्रवृत्ति के 3 गुण ज्ञान, साहस और वासना के आधार पर समाज को 3 वर्ग शासक, सैनिक और उत्पादक में विभाजित किया है। उसके न्याय के अनुसार तीन वर्गों को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। शासन और सैनिक वर्ग को उत्पादक वर्ग की आर्थिक इच्छाओं को छोड़ देना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो अपने पद से भ्रष्ट हो जाएंगे। अतः शासन एवं सैनिक वर्ग को स्वार्थ से दूर रखने के लिए संपत्ति और परिवार से वंचित रखना अनिवार्य है। बाकर ने कहा है, "यदि उसके दो आदर्श राज्य के 2 प्रधान वर्ग शासक तथा सैनिक कुशलतापूर्वक नि:स्वार्थ भावना से कार्य करना है, तो इन्हें साम्यवादी व्यवस्था के अंतर्गत रहना चाहिए।" प्लेटो का यह पक्का विश्वास था कि सैनिक और परिवार का साम्यवाद उन्हें ( शासक और सैनिक ) वास्तविक रूप में स्वार्थ एवं चिंता से रहित बना देगा।
2. राजनैतिक आधार-राजनीतिक दृष्टि से भले ही प्लेटो ने साम्यवाद का समर्थन किया है। राजनीतिक तथा आर्थिक शक्तियों को अलग अलग रखना चाहता था। उसका कहना था की राजनैतिक तथा आर्थिक शक्तियां एक साथ में करने से बहुत बुरे परिणाम निकलेंगे। इसलिए उसने शासक वर्ग को आर्थिक शक्तियों से वंचित रखा। उन्होंने केवल राजनैतिक सत्ता सौंपी। अतः आदर्श राज्य की स्थापना के लिए साम्यवाद राजनीतिक दृष्टि से भी अनिवार्य था।
3. दार्शनिक आधार-दार्शनिक प्लेटो ने अपने साम्यवाद को विशेष कार्य के सिद्धांत के द्वारा पृष्ठ किया है। उसके अनुसार शासन वर्ग का समस्त सांसारिक तत्वों से दूर रहना चाहिए। वह अपने दार्शनिक शासकों को प्राचीन काल के कुटिया में रहने वाले सन्यासियों के निकट रखता है जो पारिवारिक जीवन तथा संपत्ति को छोड़कर जन-कल्याण की बात सोचते हैं। इस संबंध में वेपर कहता है, "संरक्षण तथा सन्यासी का स्थान सर्वोच्च है। संरक्षण तथा सन्यासी को सांसारिक चिंताओं से दूर रहना चाहिए।" साम्यवाद का दार्शनिक आधार भारतीय दृष्टिकोण के निकट है।
प्लेटो के साम्यवाद की रूपरेखा
प्लेटो ने अपने साम्यवाद को शासन और सैनिक वर्ग पर सीमित रखा है। उत्पादक वर्ग के लिए उसने साम्यवाद की कोई रूपरेखा प्रस्तुत नहीं की। उसके साम्यवाद के दो रूप हैं-
1. संपत्ति का साम्यवाद,
2. पत्नियों का साम्यवाद।
(1) संपत्ति का साम्यवाद-प्लेटो ने शासन तथा सैनिक वर्ग पर संपत्ति का साम्यवाद लागू किया है। उसके अनुसार शासक और सैनिक वर्ग किसी भी प्रकार की संपत्ति के स्वामी ना होंगे, क्योंकि संपत्ति ऐसी वस्तु है जो व्यक्तियों को अपने मार्ग से भ्रष्ट कर देती है और इसके मुंह में पढ़कर शासक वर्ग जनता का शोषण करने लगता है। इस संबंध में सेबाइन का कथन उल्लेखनीय है की, "प्लेटों की यह किरण मान्यता थी कि शासक पर धन का बहुत खराब प्रभाव पड़ता है। इस बुराई को दूर करने का प्लेटों को यही उपाय सूझा कि जहां तक सिपाहियों और शासकों का संबंध है धन का अंत ही कर दिया जाए। शासकों का लोग दूर करने का एकमात्र यही उपाय है कि उनके पास कोई व्यक्तिगत संपत्ति ना रहने दी जाए। वे किसी वस्तु को अपनी ना कह सकें। शासक अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान रहें।"
अब प्रश्न ये उठता है कि इन दोनों वर्गों को संपत्ति से वंचित कर दिया जाएगा तो उनकी आवश्यकता कैसे पूरी होंगी। इस प्रश्न के उत्तर में प्लेटो कहता है कि राज्य अपनी नियमित आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। रिपब्लिक में शासकों की जीवन चर्या का वर्णन करता हुआ प्लेटों कहता है-प्रथम तो जितनी कम-से-कम संपत्ति नितांत आवश्यक है उससे अधिक संपत्ति उनमें से किसी को नहीं रखनी चाहिए। दूसरे, किसी के पास घर अथवा भंडार नहीं होना चाहिए जो सबके स्वेच्छा पूर्ण प्रवेश के लिए नित्य खुला ना रहता हो। उनको भोजन सामग्री इतनी मात्रा में और इतनी होने चाहिए जो कि संयमी और साहसी योद्धा भक्तों के लिए उपयुक्त हो। या उनको नागरिकों द्वारा सुनिश्चित एवं सू निर्धारित ढंग से उनकी संरक्षक व्यक्ति के रूप में इतनी मात्रा में मिलनी चाहिए कि ना तो वर्ष के अंत में आवश्यकता से अधिक बचा रहे और ना ही कम पड़े। युद्ध शिविर में रहने वाले योद्धाओं के सामान अपना भोजन एवं रहना सामूहिक होना चाहिए रही सोना-चांदी की बात तो उसके विषय में हम उनसे कहेंगे कि सोना और चांदी तो उनको अपने देवताओं द्वारा नित्य ही अपनी आत्मा के भीतर ही प्राप्त है। अतः उनको मृत्यु लोक में निम्न कोटि की धातु की आवश्यकता नहीं। मृत्यु लोक की धातु के मित्रों द्वारा अपने को अपवित्र करना उन्हें सहन नहीं होना चाहिए। इस प्रकार रहते हुए वे अपनी भी रक्षा कर सकेंगे और नगर की भी। परंतु जब कभी भी वे अपनी भूमि, घर और धन को उपार्जित कर लेंगे तब अपने अन्य नागरिक जनों के सहायक बने रहेंगे उन पर दोषपूर्ण अत्याचार करने वाले सहायक बन जाएंगे।
सैनिक और शासक वर्ग द्वारा संपत्ति का त्याग केवल राज्य को ही एकता के बंधन में नहीं बांधेगा, अपितु शासक एवं शासित वर्ग के बीच भी एक बंधन आ जाएगा। इस प्रकार से उसके संपत्ति के साम्यवाद की रूपरेखा निम्न प्रकार की होगी-
1. सैनिक और शासक वर्ग को व्यक्तिगत संपत्ति रखने का अधिकार नहीं होगा।
2. उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति का उत्तरदायित्व राज्य का होगा।
3. शासक वर्ग और सैनिक वर्ग के निवास करने के लिए सार्वजनिक आवास गृह होंगे और वे अपना भोजन सार्वजनिक भोजनालय में करेंगे। सेबाइन के अनुसार, "प्लेटो के साम्यवाद का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक है। वह साम्यवाद का उपभोग धनवा सामाजिकरण करने के लिए नहीं करता, अपितु धन का सामाजिकरण इसलिए करता है जिससे शासन को भ्रष्ट करने वाले प्रभाव नष्ट हो जाएं।"
(2.) पत्नियों का साम्यवाद - प्लेटो के साम्यवाद के अनुसार शासन और सैनिक वर्ग को ना केवल संपत्ति का मुंह छोड़ना होगा, अपितु उन्हें पारिवारिक एवं दांपत्य जीवन का भी त्याग करना होगा। प्लेटो ने परिवार को सब स्वार्थी भावनाओं को उत्पन्न करने वाली संस्था माना है। परिवार के कारण ही व्यक्ति को संपत्ति से मुंह होता है अतः उसका यह विचार था कि शासन एवं सैनिक वर्ग को परिवारिक बंधनों से मुक्त रखकर नि:स्वार्थ रूप से कर्तव्य पालन की आशा की जा सकेगी। इसी कारण शासक और सैनिक वर्ग को अलग-अलग परिवारों के बंधन में डालकर संयुक्त परिवार के बंधन में डालने की योजना प्रस्तुत की। उसका विचार था कि इससे एकता में भी वृद्धि होगी और पुरुषों में अपने परिवार के लिए संपत्ति उत्पादन की इच्छा नहीं होगी। इसी कारण बार्कर ने कहा है, "अभिभावकों ( सैनिक और शासन ) में दांपत्य जीवन का त्याग उनके निजी संपत्ति त्याग का ही उप सिद्धांत अवश्यंभावी उप सिद्धांत के रूप में है।"
प्लेटो के पत्नियों के साम्यवाद का साया है कि विवाह केवल संतान उत्पन्न करने के उद्देश्य से किया जाए और विवाह पर राज्य का नियंत्रण होगा। संतान उत्पन्न हो जाने के पश्चात स्त्री और पुरुष को विवाह के संबंध को तोड़ देना चाहिए जिससे वह अधिक दांपत्य जीवन में ना फर्स सकें। बच्चों के पालन-पोषण का उत्तरदायित्व राज्य का होगा। पत्नियों के साम्यवाद के अनुसार एक स्त्री एक पुरुष की पत्नी हो सकती थी, क्योंकि संतान उत्पन्न होने के पश्चात वह किसी दूसरे पुरुष की पत्नी हो सकती थी। प्लेटो ने अपने इस साम्यवाद का रूप बताते हुए कहा है, "संरक्षण स्त्री-पुरुषों के कोई भी अपना निजी घर नहीं बनाएगा। स्त्रियां समान रूप से पत्नियां होंगी और ना तो माता-पिता अपनी संतान को जान सकेंगे और ना संतान अपने माता-पिता को।"
पत्नियों के साम्यवाद को प्रतिपादित करने में प्लेटो का उद्देश्य -
1. परिवार के मुंह से सन रक्षकों को मुक्त रखना होगा।
2. नारी जाति की स्वतंत्रता के उद्देश्य से भी प्लेटो ने पत्नियों के साम्यवाद का समर्थन किया है।
3. उत्तम एवं योग्य संतानों की दृष्टि से भी प्लेटो ने पत्नियों के सामने बात का समर्थन किया है।
प्लेटो के साम्यवाद की विशेषताएं
प्लेटो के साम्यवाद की विशेषताएं निम्नानुसार हैं-
1. प्लेटो का साम्यवाद आदर्श की पूर्ति है।
2. प्लेटो का साम्यवाद केवल सैनिक तथा शासक वर्ग के लिए है। उत्पादक वर्ग साम्यवाद के प्रभाव से मुक्त है।
3. प्लेटो का साम्यवाद अभिजात वर्गीय साम्यवाद है।
4. प्लेटो के साम्यवाद का स्वरूप तपस्या आत्मक है।
5. उसके साम्यवाद का उद्देश्य सामाजिक व आर्थिक ना होकर राजनीतिक विद्वान दोषों को दूर करना था।
6. प्लेटो के संवाद का उद्देश्य स्वास्थ्य एवं योग्य संतान की उत्पत्ति करना था। जिससे सुदृढ़ एवं आदर्श राज्य का निर्माण हो सके।
प्लेटो के साम्यवाद की सामान्य आलोचना-
1. प्लेटो ने अपने साम्यवाद में शासक वर्ग एवं सैनिक वर्ग को उत्पादक वर्ग के अधीन कर दिया है। आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हें उत्पादक वर्ग पर निर्भर रहना पड़ेगा। इस कारण शासक वर्ग उत्पादक वर्ग की गलत बातों को भी सहन करेगा इससे भ्रष्टाचार की नीति को बढ़ावा मिलेगा।
2. एक ऐसे शासक वर्ग की कल्पना की जा सकती है जिसका अपना कुछ भी ना हो।
3. प्लेटो का साम्यवाद नकारात्मक है। बार्कर का कहना है, "प्लेटो को साम्यवादी व्यवस्था एक ऐसी धारणा है जिसका समाज की आर्थिक व्यवस्था से कोई संबंध नहीं है। वह उत्पादन की व्यक्तिवादी व्यवस्था को वैसा ही छोड़ देता है और एक भी उत्पादक वर्ग को स्पर्श नहीं करता।।"
4. प्लेटो ने अपने साम्यवाद में स्त्रियों के स्वाभाविक गुण महत्व की उपेक्षा की और कहा है कि यह गुण माता के अलावा कोई नहीं दे सकता
5. स्त्री एवं पुरुष में लिंग का अंतर तो होता ही है गुणों का भी अंतर होता है। स्त्री कोमल, दयालु होती है जबकि पुरुष कठोर शक्तिशाली होते हैं।
6. प्लेटो की अस्थाई विवाह की योजना भी उचित नहीं है। स्त्री एवं पुरुष को बच्चा पैदा करने की एकमात्र मशीन मानना गलत है। इसका संबंध केवल शारीरिक ही नहीं होता है आध्यात्मिक भी होता है।
7. प्लेटो ने परिवार के महत्व को भुला दिया है, जबकि पारिवारिक मनुष्य की प्राथमिक पाठशाला होती है।
8. स्त्री संबंधी साम्यवाद केवल कल्पना की उड़ान है। वह सांसारिक अवश्य होगा।
9. सेबाईन का कहना है कि, "प्लेटो का साम्यवाद स्पष्ट नहीं है। उसके साम्यवाद में दासों के लिए कोई स्थान नहीं है।"
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2. प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए।
[ Evaluate plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो के साम्यवाद सिद्धांत का वर्णन कीजिए।
[ Describe plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो के साम्यवादी विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
[ Critically examine plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो के साम्यवाद का वर्णन कीजिए।
[ Describe plato's theory of communism.]
Or
प्लेटो की साम्यवाद की योजना का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए.
[ Critically examine plato communism.]
प्लेटो का विषयक सिद्धांत
( Plato's conception of justice )
'न्याय' प्लेटो के राजनीतिक आदर्श का आधार है। प्लेटो 'आदर्श राज्य' की स्थापना करना चाहता है, वह राज्य उसके न्याय के सिद्धांत पर ही टिका हुआ है। प्लेटो ने अपने 'आदर्श राज्य' को 4 गुना में बताया है-
1. न्याय,
2. विवेक,
3. साहस, और
4. संयम या सहिष्णुता।
5.
प्लेटो ने प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा के तीन स्वभाविक वित्तीय बताई है-
(I) शासन वर्ग,
(ii) सैनिक या रक्षक वर्ग, और
(iii) सेवर किया उत्पादक वर्ग।
प्लेटो ने प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा की तीन स्वभाविक कृतियां बताइए हैं-
(I) ज्ञान ( reason),
(ii) साहस या मान ( spirit ), और
(iii) भूख या वासना ( appetite)।
प्लेटो चाहता है कि आदर्श राज्य अपने गुणों को प्रदर्शित करें। ऐसा तभी संभव है, जबकि समाज के तीनों वर्ग अपने गुणों के अनुसार कार्य करें। राज्य में जब शासक वर्ग ( ज्ञान-प्रधान ) नि:स्वार्थ भाव से लोगों के हितों की रक्षा करता है, सैनिक वर्ग ( साहस-प्रदान ) जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करता है और उत्पादक वर्ग ( भूख या वासना-प्रधान ) कष्ट सहन करते हुए अधिक-से-अधिक उत्पादन करता है, तब ही राज्य में न्याय का प्रवास माना जा सकता है।
प्लेटो ने 'रिपब्लिक' में न्याय की परिभाषा इस प्रकार की है,' न्याय हुआ है जो प्रत्येक मनुष्य उन कार्यों को पूरा करें, जिनकी सामाजिक प्रयोजनों के अनुसार उस से आशा की जाती है। न्याय का अर्थ यही है, ना उससे कम और ना अधिक।" इस प्रकार प्लेटो 'एक व्यक्ति, एक कार्य' ( one man, one job ); अर्थात 'कार्यगत विशेषीकरण' के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है। दूसरे शब्दों में, "न्याय प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में विद्यमान हैं और यदि वह अपने कर्तव्य का उचित ढंग से पालन करता है तो विवाह न्याय प्रियता का ही परिचय देता है।"
सेबाइन प्लेटो की धारणा को स्पष्ट करते हुए कहता है कि, "न्याय समाज की एकता का सूत्र होता है, वह उन व्यक्तियों के परस्पर ताल-मेल का नाम है जिसमें से प्रत्येक ने अपनी शिक्षा-दीक्षा और प्रकृति के अनुसार अपने कर्तव्य को चुन लिया है और वह उसी का पालन करता है। यह व्यक्तिगत धर्म भी हैं और सामाजिक धर्म भी, क्योंकि इसके द्वारा राज्य तथा इसके सदस्यों को परम कल्याण की उपलब्धि होती है।"
बार्कर के अनुसार "प्लेटो का न्याय सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने आपको कर्तव्य-पालन में तन-मन-धन से संलग्न कर देना चाहिए और व्यक्ति को पड़ोसी के कार्यों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।" दूसरे शब्दों में, "उसके मतानुसार न्याय प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में विद्यमान हैं और यदि वह अपने कर्तव्य का उचित ढंग से पालन करता है तो वह न्याय प्रीता का ही परिचय देता है।"
न्याय के दो स्वरूप - प्लेटो जिस 'न्याय' की बात करता है, उसके दो स्वरूप है-
1. व्यक्तिगत न्याय, और
2. सामाजिक न्याय।
(1) व्यक्तिगत न्याय ( Individual Justice ) - प्लेटो के अनुसार, जिस प्रकार राज्य में विवेक, साहस और संयम का निवास होता है, उसी प्रकार मानव-मस्तिष्क में भी शासक, सैनिक और उत्पादक के गुण होते हैं। जिस व्यक्ति के मस्तिष्क या आत्मा में विवेक की अधीकता है, वह दार्शनिक शासक वर्ग होता है, साहस में प्रयुक्त, व्यक्ति सैनिक वर्ग और भूख संयुक्त उत्पादक वर्ग का निर्माण करता है। तीनों वर्गों का अपनी सीमा में रहकर कार्यकर्ता है वह 'व्यक्तिगत न्याय' है। दूसरे शब्दों में, जब दार्शनिक व्यक्ति 'साहस' और 'भूख' की प्रबलता और इच्छा का दमन करते हुए 'विवेक' का सैनिक व्यक्ति 'विवेक' और 'भूख' को संयमित करते हुए 'साहस' का और एक उत्पादक 'विवेक' तथा 'साहस' को संयमित करते हुए अपने विशेष गुणों का विकास करता है, तब यह व्यक्तिगत न्याय कहलाता है।
डॉ. रानजे ( Dr. Ranse ) ने प्लेटो की उपयुक्त धारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि, "प्रत्येक व्यक्ति का अपना कार्य करना और दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप ना करना ही न्याय है। "कोयरे ( Koyre ) ने प्लेटो की न्याय संबंधी धारणा को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, "प्रत्येक नागरिक को उसके अनुकूल भूमिका और कार्य देना ही न्याय है।" कैटलिन ( Catlin ) इसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि, "मेरा स्थान और उसके कार्य, यही न्याय है।" प्रोफेसर बार्कर ने कहा है कि," प्लेटो का न्याय सिद्धांत मानव की आत्मा में निहित है। इसका कारण मानव अपने को एक ही कार्य में केंद्रित करता है और वह दूसरों के कार्यक्षेत्र में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है।
(2) सामाजिक न्याय ( Social Justice ) - सामाजिक न्याय का अर्थ है - समाज के तीनों वर्गों ( शासक, सैनिक और उत्पादक वर्ग ) का होकर अपने निश्चित कार्यों को अपने गुणों के आधार पर पूरा करना, जिससे समाज में न्याय और एकता बनी रहे। इस प्रकार यह व्यक्तिगत न्याय के द्वारा व्यक्ति स्वयं आदर्श बनता है, वहीं सामाजिक न्याय के अंतर्गत वह समाज का आदर्श नागरिक बनकर समस्त समाज को लाभ पहुंचाता है।
सामाजिक न्याय को स्पष्ट करते हुए प्रो बार्कर ने लिखा है कि, "समाज में विभिन्न प्रकार के लोग होते हैं; जैसे - उत्पादक, सैनिक और शासक। एक-दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति के लिए वह संगठित हैं और एक समाज के संगठित होकर स्वधर्म का पालन कर उन्हें समाज को ऐसी इकाई बनाया है, जो पूर्ण है, क्योंकि वह समस्त मानव-मानस की उपज और उसी का प्रतिबिंब है। सामाजिक जीवन में इसी मूलभूत सिद्धांत को प्लेटो के न्याय की संज्ञा दी है।
प्लेटो व्यक्तिगत और सामाजिक न्याय को एक-दूसरे से अलग नहीं मानता है जैसा कि, "फोस्टर ने स्पष्ट के लिए न्याय मानव सद्गुण का अंग है। और साथ ही वह सूत्र है जो राज्य के लोगों को परस्पर बांधे रखता है। यह सामान गुण ही मनुष्य को अच्छा और सामाजिक बनाता है। यह समरूपता प्लेटो के राजनीतिक दर्शन का पहला और आधारभूत सिद्धांत है।"
स्पष्ट है कि," न्याय का प्रयोजन आत्मा के तीनों तत्वों में साम्यावस्था, सामंजस्य और व्यवस्था बनाए रखना है। यह सामंजस्य आत्मा के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना शरीर के लिए स्वास्थ्य।" इस प्रकार," न्याय जहां और समाज के सवान जस्टिस स्थापित करने के कारण राज्य को एक सूत्र में बांधने वाली सामाजिक गुण है, वहीं दूसरी ओर वह आयुक्त गुण भी है, क्योंकि यह मनुष्य के आध्यात्मिक संतुलन को ठीक बनाकर उसे श्रेष्ठ और सामाजिक बनाता है।"
प्लेटो के न्याय सिद्धांत की विशेषताएं
( Characteristics of platonic conception of Justice )
प्लेटो की न्याय संबंधी उपयुक्त विचारधारा से इसकी निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-
1. न्याय कृत्रिम नहीं है - प्लेटो ने न्याय की कृत्रिम वस्तु ना मानकर इसे आंतरिक माना है। इस संबंध में फोस्टर ने लिखा है कि," प्लेटो का सिद्धांत यह है कि न्याय मानव-सद्गुण का अंग है।" फोस्टर के अनुसार," सद्गुण ही वाह बंधन-सूत्र है, जो मनुष्य को राज्य में एक-दूसरे से मिलाता अथवा जोड़ता है।"
प्लेटो ने मानव सद्गुण को 4 समुदाय का योग बताया है; यह है - विवेक, साहस आत्म संयम और न्याय ( wisdom, courage, temperance and Justice)। इनमें से पहले 3 गुण आदर्श राज्य के 3 वर्गों में भी पाए जाते हैं - विवेक शासन वर्ग में साहस सैनिक वर्ग में, और आत्म संयम उत्पादक वर्ग में। बचे हुए चौथे गुण न्याय के संबंध में प्लेटो का मत है। कि ,"न्याय अपनी स्थिति के अनुरूप कर्तव्यों का पालन करना और दूसरे के कर्तव्यों में हस्तक्षेप करने की इच्छा मात्र है। अतः इसका आवाज अपना निश्चित कर्तव्य करने वाले प्रत्येक नागरिक के मन में है।" स्पष्ट है कि न्याय व्यक्ति की आत्मा की प्रतिध्वनि है।
2. न्याय कार्य-विशेषीकरण (Specialisation of functions ) का सिद्धांत है - प्लेटो ने मानव आत्मा के 3 गुणों - ज्ञान, साहस और भूख के आधार पर समाज और शासक, सैनिक और उत्पादक 3 वर्गों में बांटा है। प्लेटो ने इन तीनों वर्गों को अलग-अलग इन के विशिष्ट कार्य ही सौंपता है। फ्लैटों के शब्दों में, "एक मनुष्य को एक ही कार्य करना चाहिए, वह कार्य जो उसकी प्रवृत्ति के अनुकूल है।"
3. न्याय हस्तक्षेप का सिद्धांत है ( The principal of non-interference ) - प्लेटो के आदर्श राज्य में तीनों वर्गों के कार्य पूर्व-निश्चित है और सामाजिक न्याय प्रत्येक सदस्य से यह अपेक्षा करता है कि वह दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप ना करें सेबाइन इसकी व्याख्या करते हुए कहता है। कि व्यक्ति के लिए सबसे अच्छी बात यह है ,"कि उसके पास काम हो और वह उसे कर सकता है। दूसरा, व्यक्तियों और समाज के लिए भी सबसे अच्छी बात यही है कि प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना कार्य ठीक ढंग से करें।
4. न्याय सामाजिक एकता का सिद्धांत है - प्लेटो का कहना है कि कार्य और गुणों के आधार पर विभाजित समाज वास्तव में विभाजित नहीं, वह तो सामाजिक एकता का प्रतीक है। प्लेटो इस संबंध में कहता है कि ,"न्याय व सूत्र है जो समाज के व्यक्तियों को सामंजस्य पूर्ण संगठन में बांधे रखता है।" बार्करड के अनुसार प्लेटो के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति अलग इकाई नहीं वरन एक व्यवस्था का अंग है।"
5. न्याय के दो स्वरूप - न्याय के दो स्वरूप है - व्यक्तिगत न्याय और सामाजिक न्याय।
6. न्याय की स्थापना दार्शनिक शासक द्वारा - प्लेटो कहता है कि उसके आदर्श राज्य में न्याय की स्थापना दार्शनिक शासक वर्ग करेगा। यह उल्लेखनीय है कि प्लेटो के शासक वर्ग व सैनिक वर्ग के लिए संपत्ति व स्त्रियों के साम्यवाद की व्यवस्था की है, जिससे वह निस्वार्थ सेवा करते रहे।
7. प्लेटो के न्याय सिद्धांत की अन्य विशेषताएं -
(I) प्लेटो का न्याय कानूनी नहीं। इसका मतलब नैतिकता और साधनों (Goodness ) से है।
(ii) न्याय प्रत्येक व्यक्ति के मन में निहित रहता है। न्याय व्यक्ति पर थोपा नहीं जाता, यह तो उसकी आत्मा का विशिष्ट गुण है।
(iii) प्लेटो के अनुसार राज्य व्यक्ति का ही विराट रूप है। राज्य में ही व्यक्ति की उन्नति संभव है।
(iv) व्यक्ति और समाज दोनों ही के स्तर पर न्याय-गुण की प्राप्ति के लिए प्लेटो एक व्यवस्थित शिक्षा क्रम भी बताता है, जिसके अभाव में दार्शनिक शासन और आदर्श राज्य की स्थापना संभव नहीं है।
संपर्क में," प्लेटो की न्याय संबंधित धारणा - नैतिकता, धर्म, आदर्श, सद्गुरु आदि आध्यात्मिक तत्वों के पर्यायवाची है, जिसमें मनुष्य के जीवन के आंतरिक पक्ष का सर्वश्रेष्ठ सम्मिलित है।" इसलिए 'रिपब्लिक' को 'न्याय मीमांसा का ग्रंथ' भी कहा गया है।
प्लेटो के न्याय सिद्धांत की आलोचना।
( Criticism of playo's theory of Justice )
प्लेटो के न्याय सिद्धांत को विद्वानों में व्यावहारिक और कल्पना वादी बताया है। इसे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी गलत बताया गया है। उसे जटिल, नीरस और मानव-जीवन की इच्छा पर पानी फिरने वाला कहा गया है। सेबाइन तो कहता है कि," प्लेटो का न्याय संबंधी सिद्धांत स्तर या निष्क्रिय, आत्मनुवादी, अनैतिक, व्यावहारिक और अमनोवैज्ञानिक है।
संक्षेप में, प्लेटो के न्याय सिद्धांत की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है-
1. केवल नैतिकता का सिद्धांत - प्लेटो का न्याय सिद्धांत, न्याय का सिद्धांत ना होकर नैतिकता का सद्गुणों का सिद्धांत है। बार्कर कहता है कि "प्लेटो का न्याय वस्तुतः न्याय नहीं है। वह केवल मनुष्य को अपने कर्तव्यों तक सीमित करने वाली भावनामात्र है, जो ठोस कानून नहीं है।" प्लेटो ने नैतिक कर्तव्य और कानूनी दायित्व में कोई अंतर ही नहीं दिया है।
2. केवल कर्तव्यों से संबंधित सिद्धांत - प्लेटो का न्याय संबंधित, सिद्धांत इसलिए भी अधूरा है कि यह लोगों के कर्तव्यों की ही बात करता है, अधिकारों की नहीं न्याय की प्राप्ति के लिए भी व्यक्ति को राज्य में इस प्रकार विलीन कर देना उसके विकास के लिए हानिपृद है।
3. निष्क्रिय और निश्चल सिद्धांत ( Passive a and static principles )-प्लेटो के न्याय का दोष या है कि वह निष्क्रिय और निश्चल है। यह प्रत्येक व्यक्ति का एक निश्चित कार्य मानकर उसकी उन्नति और विकास के भी दरवाजे बंद कर देता है। यह बहुत अधिक आत्म संयमी और मर्यादित है व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करता।
4. 'एक व्यक्ति, एक कार्य का सिद्धांत ठीक नहीं - प्लेटो की न्यायिक कल्पना 'एक व्यक्ति, एक कार्य' तथा 'कार्य के विशिष्टीकरण' पर आधारित है, जिसे स्वीकार कर लेने पर व्यक्ति का सर्वज्ञ विकास संभव है। प्लेटो की 'योग्यता' से क्या तात्पर्य है, यह स्पष्ट नहीं। व्यक्ति में विभिन्न योग्यताएं संभव है। इसके अतिरिक्त किस व्यक्ति में कैसी विशिष्ट योग्यता है, इसकी परीक्षा कौन करेगा?
5. अत्यधिक पृथक्करण का सिद्धांत ( Excessive Separation Theory )-प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में तीन वर्गों - शासक वर्ग, सैनिक वर्ग और उत्पादक वर्ग का उल्लेख किया है। तीनों वर्ग कार्य-विभाजन के सिद्धांत पर कार्य करते हैं, इसका ( वर्ग-विभाजन ) का कुप्रभाव '3 राज्यों: के रूप में भी प्रकट हो सकता है।
6. दार्शनिक शासन की निरंकुशता - प्लेटो के आदर्श राज्य में, जिसकी स्थापना वह अपने कथित न्याय के द्वारा करना चाहता है, उसमें वह दार्शनिक शासकों को असीमित शक्तियां देता है। शक्तियों के एकाधिकार से शासन मोह और मदद से भ्रष्ट होकर निरंकुश हो सकते हैं। भले ही शासक वर्ग को कितनी भी शिक्षा दी जाए।
7. अमनोवैज्ञानिक सिद्धांत प्लेटो का न्याय सिद्धांत साम्यवादी योजना पर टिका हुआ है। फ्लैटों शासक वर्ग को ना केवल संपत्ति से वरन् स्त्रियों से भी दूर रखता है। परंतु स्त्रियों का साम्यवाद ना केवल अनैतिकता को जन्म देगा, वरन् यह अमनोवैज्ञानिक भी है। वैवाहिक जीवन की आवश्यकताएं व्यक्ति के जीवन में आधारभूत स्थान रखती है।
8. प्लेटो के न्याय सिद्धांत मैं सब को सुख नहीं - प्रथम 2 सैनिक वर्ग और शासक वर्ग ही सुखी नहीं रहेंगे, जबकि उन्हें न केवल संपत्ति से, वर्णन परिवार से भी वंचित रखना होगा। दूसरे, उत्पादक वर्ग बहुत-से सुखों से वंचित रहेंगे क्योंकि वह राजनीतिक क्षेत्र में भाग नहीं ले सकेगा।
9. व्यक्ति राज्य के अधीन - प्लेटो के आदर्श राज्य में व्यक्ति को पूर्णतया राज्य के अधीन कर दिया गया है। वास्तविक न्याय में व्यक्ति और राज्य दोनों की उन्नति साथ-साथ होनी चाहिए।
10. प्लेटो के न्याय सिद्धांत की अन्य आलोचना का दोष - कोई निश्चित कार्य आजीवन करते रहना गलत सिद्धांत है। जिसका अर्थ तो यह हुआ कि प्लेटो के आदर्श राज्य में एक मोची सदैव मोची ही रहेगा। और एक शासक सदैव शासक ही रहेगा या अभी भूलना चाहिए कि मानव-प्रकृति परिवर्तनशील है राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी यह जानते हैं। कि रूसो प्रारंभ में एक आवारा और लावारिस नौजवान था। ऐसे और अनेक उदाहरण है जो फिर प्लेटो के आदर्श राज्य का उत्पादक व अन्य सैनिक वर्ग दार्शनिक शासक नहीं बन सकता है।
11. मानव-स्वभाव के विरुद्ध है - क्योंकि प्लेटो शासक वर्ग और सैनिक वर्ग को पारिवारिक सुख और संपत्ति से वंचित करता है अतः यह सिद्धांत मानव-स्वभाव के विरुद्ध है।
12. मानव-प्रकृति विषम है - उसे विवेक, साहस याभूकी निश्चित सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। मनुष्य भी भूख पर तो कभी साहस पर और कभी विवेक पर ध्यान देता है।
13. यह सिद्धांत अप्रजातांत्रिक भी है - क्योंकि उत्पादक वर्ग को सदैव के लिए शासन में भाग लेने से वंचित कर दिया जाता है।
सेबाइन ने लिखा है कि," प्लेटो के न्याय सिद्धांत में सार्वजनिक शांति और व्यवस्था को बनाए रखने का केवल नाम मात्र का उल्लेख है।"
जोड़ ने लिखा है की," प्लेटो के न्याय के सिद्धांत और फ़ासिज़्म में बहुत ही कम अंतर है।"
संक्षेप में, प्लेटो की न्याय की धारणा का बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि वाले दार्शनिक ( प्लेटो ) की एक व्यवहारिक कल्पना है।
[ Evaluate plato's theory of communism.] / 2. प्लेटो के साम्यवाद के सिद्धांत का मूल्यांकन कीजिए।
[ Evaluate plato's theory of communism.]
बहुत ज्यादा पसंद आया होगा। क्योंकि इस पोस्ट में प्लेटो की सोच के बारे में संक्षिप्त में बताया हुआ है। तो दोस्तों मैं आप सब से यही गुजारिश करूंगा कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करें । ताकि यह जानकारी लोगों तक पहुंचे।🙏🙏🙏🙏
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