1. राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए? ( Explain the role of Women in political system. ) / 2. राजनीतिक दल के कार्य एवं महत्व की व्याख्या कीजिए ? ( Describe the function and importance of political parties. )
1. राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए? ( Explain the role of Women in political system. ) / 2. राजनीतिक दल के कार्य एवं महत्व की व्याख्या कीजिए ? ( Describe the function and importance of political parties. )
राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए ?
( Explain the role of Women in political system. )
भारत की राजनीति प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी
( Participation of ladies in Indian political process )
भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी का अध्ययन किया जाए, तो यह स्पष्ट हो जाता है भारत के प्रसंग में तो तिथियां अधिक असंतोषजनक है। वर्तमान समय में 543 सदस्यों को लोकसभा में 48(8.8%) महिलाओं हैं और 242 सदस्यों की राज्यसभा में 25 (10.4 प्रतिशत) महिलाएं हैं तथा कुल मंत्री पदों में से केवल 6.1 प्रतिशत पर ही महिलाओं को प्राप्त है। अतः समस्त राज्यव्यवस्था में महिला भागीदारी में वृद्धि हेतु निरंतर और सघन प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता है।
विदाई संस्थाओं में महिलाओं का व्यवहार और भूमिका
( Behaviour and role of ladies in legislative institution )
विभिन्न देशों की विदाई संस्थाओं में वर्तमान में जो महिलाएं सदस्य हैं उनकी भूमिका में संबंध से सभी देशों के प्रसंग में तो कोई विधिवत् और विदेश अध्ययन सम्मुख नहीं है, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका इन 2 देशों के संबंध में पूरे विवरण सहित या तथ्य सामने आया है कि महिलाओं ने विदाई संस्थाओं ( ब्रिटिश संसद और अमेरिकी कांग्रेस ) में अपने सहयोगी पुरुष सदस्यों की तुलना में अधिक रचनात्मक और अधिक शांति वादी नीति अपनाई है तथा अपना रही है। महिला सदस्यों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक बीमा, वृद्ध व्यक्तियों की देखभालष बाल विकास, कर संग्रह के मानवीय पक्ष, पर्यावरण की रक्षा और बिजली पानी की उचित व्यवस्था आदि, पर पुरुष सदस्यों की तुलना में अधिक प्रस्ताव रखें तथा अधिक चिंतन व्यक्त की।
इसी प्रकार महिला सदस्यों ने सामान्यता युद्ध का विरोध और शांति नीति अपनाने तथा संयुक्त राष्ट्र संघ को अमेरिका प्रभावित संगठन बनाने पर बल दिया। ब्रिटिश संसद और अमेरिकी कांग्रेस ने 2002ई. के मध्य से 2003ई. के प्रारंभ तक लगभग निरंतर इस बात पर विचार-विमर्श चला कि अमेरिका इराक के विरुद्ध दल प्रयोग करें या इस विवाद के प्रसंग में संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशन और मध्यस्थता के मार्ग को अपनाएं। इस विषय के प्रसंग में पुरुष सदस्यों की तुलना में महिला सदस्यों के बहुत ज्यादा बड़े प्रतिशत ने इस बात पर बल दिया कि इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्य था और निर्देशक को पूरे मन के साथ और पूरी सीमा तक अपनाया जाना चाहिए। यह उदाहरण और अन्य सभी उपलब्ध तथ्य इस बात को स्पष्ट करते हैं कि महिलाएं सामान्यता रचनात्मक दृष्टिकोण के साथ शांतिप्रिय और शांति वादी है और यह भविष्य के लिए शुभ संकेत भी है।
राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी:बाधक तत्व
( Ladies participation in political process:Hinder elements )
ब्रिटेन, अमेरिका, स्विजरलैंड, चीन, भारत और अन्य देशों के संदर्भ में, राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी का जो अध्ययन किया गया, उससे यह स्पष्ट है कि इन देशों में और सामान्य रूप में विश्व के अन्य देशों में राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी की स्थिति संतोषजनक नहीं है। वस्तुतः राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी के मार्ग में बाधक तत्व विद्यमान है। यह बाधक तत्व एक नहीं, वरन् अनेक है तथा इनमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार के तत्व हैं। विभिन्न बाधक तत्वों की एक संक्षिप्त विवेचना इस प्रकार है-
1. राजनीतिक तत्व - राजनीति क्षेत्र में अनेक ऐसे कारण हैं, जो महिलाओं की भागीदारी को बाधित करते हैं। लगभग सभी देशों की राजनीति 'पुरुष वाली और पुरुषों की कार्यशैली' ( Male dominated and Musculine Style Politics ) पर है तथा उसमें महिलाओं की परिस्थितियों और सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया गया है। संसदीय बसों में लंबे घंटे तक उसे उपरांत संसदीय समिति के कार्य, दलीय कार्य और निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े विभिन्न कार्य तथा इन कार्यों से जुड़ी विभिन्न यात्राएं यह सब कुछ इतना अधिक हो जाता है कि महिलाएं, पत्नी, मां, बहन और दादी की भूमिका निभाने यह रिश्ते से जुड़े समस्त कार्यों के साथ उनका तालमेल नहीं बिठा पाती्। महिला को राजनीति में प्रवेश करने की पूर्व अपने परिवारिक सदस्यों से अनुमति लेनी होती है, जो सामान्यता एक सरल कार्य नहीं है।
इसके अतिरिक्त आज की स्थिति में निर्दलीय रूप से चुनाव लड़का ना तो संभव नहीं और महिलाओं के लिए राजनीतिक दल का टिकट प्राप्त कर पाना और भी कठिन है। विश्व के विभिन्न देशों में जो राजनीतिक नेता है, उन्हें कुछ मिलाकर लगभग 11% महिलाओं और 89% पुरुष। इन नेताओं में से अधिकांश पुरुषवादी सोच और यथास्थितिवाद से जुड़े हैं। स्वभाविक रूप से जब कोई महिला राजनीति में प्रवेश करना चाहती है तो पग पग बांध पहुंचते हैं तथा महिला के लिए दल का प्रत्याशी बन पाना बहुत कठिन हो जाता है। निडिया श्वेदोवा ने अपने एक लेख में कठिनाइयों का उल्लेख इस प्रकार किया है-
"किसी महिला के लिए राजनीति में प्रवेश करने का विचार बन पाना बहुत कठिन है। एक बार वह अपने विचार बना ले, तब उसे इस संबंध में अपने पति, बच्चों और परिवार को तैयार करना होता है। जब इन सब कठिनाइयों को पार कर दल में टिकट के लिए आवेदन करें, तब पुरुष प्रतियोगी जिसके विरुद्ध उसे चुनाव लड़ना है, उसके संबंध में कई तरह की कहानियां प्रचारित-प्रसारित करता है। इस सब के बाद जब उसका नाम दलीय नेताओं के सामने जाता है, तब वह इसे इस कारण उम्मीदवारी से वंचित कर देते हैं कि उन्हें इस सीट को देने का डर रहता है। "अधिकांश देशों में हम आज भी पुरुष प्रधान समाज में रह रहे हैं और पुरुष प्रधान समाज को राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी कम हो, यह नितान्त स्वभाविक है।
2. सामाजिक-आर्थिक तत्व - 'राजनीति महिलाओं का कार्य-क्षेत्र नहीं है, 'सदियों से चला आ रहा यह विचार अब भी अनेक देशों में बिना हुआ है, परिणामत: महिलाएं राजनीति की ओर उन्मुख नहीं होती और जो इस ओर उन्मुख होती हैं, उन्हें विविध प्रकार से हंसो सहित किया जाता है। इसके अतिरिक्त विश्व के अधिकांश देशों में राजनीति में धन की शक्ति बहुत अधिक बढ़ गई है, उम्मीदवारों को दल की ओर से बहुत थोड़ी ही वित्तीय साधन दिए जाते हैंस शेष वित्तीय साधन तो उम्मीदवार को खुद ही जुटाने होते हैं।
विविध क्षेत्रों में वित्तीय साधन जुटा लेने का कार्य पुरुषों की तुलना में महिलाएं ठीक प्रकार से नहीं कर पाती या बात उन्हें नुकसान की स्थिति में पहुंचा देती है। इन सबके अतिरिक्त अधिकांश देशों में राजनीतिक बहुत भद्दा और विभिन्न क्षेत्रों से भरा खेल बन गया है। व्यक्तिगत लांघन दुष्ट आचार्य योजित चुनाव प्रचार राजनीतिक जोड़-तोड़ बल प्रयोग और फर्जी मतदान चुनाव के विजय प्राप्त करने की गुरु बन गए हैं। पुरुष इन सभी कार्यों में महिलाओं की तुलना में अधिक प्रवीण देखे गए हैं। महिलाओं की शालीनता उन्हें इन कार्यों से विमुख करती है और वह नुकसान में रहती हैं।
3. राजनीतिक शिक्षा और संपर्क सुविधाओं में महिलाओं का पिछड़ापन - शिक्षा राजनीति के संचारआत्मक तत्व का कार्य करती है और लगभग सभी देशों में महिलाएं शिक्षा के संबंध में पुरुषों से पीछे हैं, राजनीतिक शिक्षण-प्रशिक्षण में तो वे पुरुष से भी बहुत पीछे हैं। परिणाम स्वरूप में चुनाव लड़ने का विचार नहीं कर पाती, यदि कर पाती है तो सफल नहीं हो पाती। मजदूर संघों, व्यावसायिक संघ और अन्य दबाव समूह से महिलाएं कम जुड़ी रहती हैं, परिणामतया दबाव समूह चुनावी राजनीति में महिलाओं के नाम को आगे बढ़ाने की ओर प्रवृत्त नहीं होते। एक सोचनीय तथ्य यह है कि महिलाएं संगठन भी सामान्यता इस बात में रुचि नहीं लेते कि चुनाव में महिलाओं की उम्मीदवारी अधिक हो और जो महिलाएं उम्मीदवार है, वह चुनाव में विजयी हों।
4. मनोवैज्ञानिक तत्व - राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी में मनोवैज्ञानिक तत्वों का भी योग है। राजनीति उनका कार्य-क्षेत्र हो चुका है और वे चुनाव में विजई हो सकती हैं, इस बात के संबंध में सामान्यतया उनमें आत्मविश्वास का अभाव देखा गया है, अतः वे राजनीति की ओर उन्मुख नहीं होती। 'राजनीति एक गंदा खेल है' या बात बहुप्रचारित है और बहुत कुछ अंशों में सत्य भी है, स्वभाविक रूप से महिलाएं राजनीति के में भाग लेने की बात सरल से नहीं सोच पाती।
5. जन संचार साधनों ( Media ) की भूमिका - महिलाओं की कम भागीदारी के लिए समाचार-पत्र और टेलीविजन आदि जनसंचार के साधन भी कम उत्तरदाई नहीं है। जनसंचार के साधन अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और व्यवसायिक हितों के कारण नारी की देह ,उसके सौंदर्य और आकर्षण की ओर केंद्र बिंदु बनाए हुए हैं। इस बात को भुला दिया गया है कि नारी केवल आकर्षण शरीर, वरन् ज्ञान और समझ से परिपूर्ण मस्तिष्क और भारी रचनात्मकता की भी धनी है। ( Weaker Sex ) वीकर सेक्स की धारणा को जनसंख्या जनसंचार माध्यमों ने बदल वती बनाया और इस धारणा ने राजनीति में नारी की भूमिका में बाधाएं खड़ी की है।
कुछ अन्य तत्व भी है, साधारण बहुमत की पद्धति भी राजनीति में नारी की कम भागीदारी के लिए उत्तरदाई बताई जाती है। सर्वप्रमुख कारण तो स्वयं पुरुष और समाज के एक वर्ग की पुरुषवादी सोच और निहित स्वार्थ ही है। विडंबना यह है कि स्वयं नारी जाति का एक वर्ग पुरुषवादी सोच से ग्रस्त है।
राजनीति में महिला भागीदारी को बढ़ाने के लिए सुझाव
( Suggestions to improve ladies participation in politics )
यह तथ्य है कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी आज भी कम है प्रतिनिधि संस्थाओं ( व्यवस्थापिका ) में अन्य भागीदारी 15% है और निर्णय कारी संस्थाओं ( कार्यपालिका संस्थाओं ) में उनकी भागीदारी केवल 6 और 7% के बीच है। राजनीति में महिला भागीदारी अधिक हो, इसके लिए कुछ प्रमुख सुझाव निम्न प्रकार है-
1. महिलाओं का राजनीतिकरण - महिलाओं का राजनीतिकरण महिला भागीदारी को बढ़ाने का निश्चित उपाय है। महिलाओं का राजनीतिकरण एक व्यापक धारणा है और इसके अंतर्गत अनेक बातें आती है- प्रथम, सूचना-विचार और ज्ञान राजनीति का संचार आत्मक ढांचा है, अतः महिलाओं को सार्वजनिक जीवन और राजनीति के संबंध में अधिकारिक जानकारी देने, उनके विचार और ज्ञान को आगे बढ़ाने और राजनीति के प्रति उनमें अधिक-से-अधिक रूचि पैदा करने के प्रत्येक संभव चेष्टा की जानी चाहिए। द्वितीय, महिलाओं को अपनी समस्याओं, राजनीतिक समस्याओं, जीवन और प्रश्नों पर बातचीत के लिए अधिक अधिक अधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिए महिलाओं में आत्मविश्वास जागृत किया जाना चाहिए। महिलाओं के आत्मविश्वास जागृत किया जाना चाहिए तथा उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करना चाहिए कि 'यदि राजनीति एक गंदा खेल है' तो उन्हें इस खेल को गंदगी कम करने और इसमें ताजगी लाने के लिए इसमें प्रवेश करना चाहिए।
2. महिलाएं संगठित हो, विशेषता या राजनीतिक रूप से संगठित हों - राजनीतिक दलों के अंदर और बाहर महिलाओं को संगठित होना चाहिए। महिलाएं अधिक-से-अधिक संख्या में अपनी प्रशन के राजनीतिक दलों की संख्या प्राप्त करें और दल में स्वयं को प्रभावी बनाए। अधिकांश राजनीतिक दलों में नेतृत्व पद पुरुष आसीन हैं, उम्मीदवारों के चयन में उठने लिंग आधारित पूर्वाग्रह होते हैं। इन पूर्वाग्रह को प्रभाव को कम करने के लिए महिलाओं को इस बात पर जोर देना चाहिए कि उम्मीदवारों के चयन के लिए स्पष्ट नियम तथा नेतृत्व के प्रति निष्ठा के बजाय दल के प्रति निष्ठा को अधिक महत्व दिया जाए। जब राजनीतिक खेल के नियम स्पष्ट होंगे, तो अपने प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए महिलाएं राजनीतिक विकसित कर सकती हैं। प्रत्येक राजनीतिक दल की महिलाएं शाखा को अधिक सशक्त बनाने के लिए प्रयत्न किए जाने चाहिए, महिला शाखा सशक्त हो और अपने लिए अधिक प्रतिनिधित्व की मांग करें।
3. गैर-सरकारी संगठनों, विशेषतया महिला संगठनों की भूमिका - राजनीतिक उपेक्षा कृत्य विविधता और रचनात्मकता की दिशा में आगे बढ़े, इस दृष्टि से गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा राजनीति में महिलाओं की अधिक भागीदारी पर बल दिया जाना चाहिए। इस प्रसंग में सभी महिला संगठन की जागरूकता अधिक आवश्यक है। महिला संगठनों द्वारा महिलाओं की जागरूकता और सक्रियता को बढ़ाने हुए राजनीतिक दलों पर इस बात के लिए दबाव डाला जाना चाहिए कि वे अपने संगठनात्मक ढांचे में महिलाओं को प्रभावशाली भागीदारी दे और अधिकांश में उन्हें उम्मीदवार बनाएं। 'महिला का वोट महिला के लिए' यह स्थित तो संभव और उचित नहीं है, लेकिन जब कभी चुनाव मैदान में समान योग्यता वाले उम्मीदवार हो, तब महिला उम्मीदवार के पक्ष में पूरी शक्ति के साथ मजबूत किया जाना चाहिए।
4. महिलाओं को मजबूत संघों और अन्य सभी दबाव समूहों में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए। दबाव समूह को 'महिला उन्मुख' करने की चेष्टा की जानी चाहिए।
5. जीवन के सभी क्षेत्रों में संचार माध्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण है तथा अधिकाधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। राजनीति क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं और महिला संगठनों के द्वारा संचार माध्यमों के साथ मित्रता की स्थिति बनाई जानी चाहिए। 'मीडिया' नारी सौंदर्य और सामान लाने के साथ-साथ उसकी तेजस्विता, ऊर्जा शक्ति और रचनात्मकता को पूरी कलात्मकता के साथ सामने लाए।
जो महिलाएं राजनीति में है, वह अपने कार्य उचित रूप से कर सके और अन्य महिलाएं राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित हो, इसके लिए आवश्यक है कि पुरुष वर्ग की समस्त सोच में परिवर्तन हो और गृहस्थी के काम में पुरुष महिलाओं के साथ भागीदारी करें।
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2. राजनीतिक दल के कार्य एवं महत्व की व्याख्या कीजिए ?
( Describe the function and importance of political parties .)
राजनीतिक दलों का महत्व
( Importance of political parties )
वर्तमान समय में शासन की विविध रूपों में प्रजातंत्र सर्वाधिक लोकप्रिय है और प्रजातांत्रिक शासन के दो प्रकार हैं-
1. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र, और
2. प्रत्यक्ष या प्रतिनिधि आत्मक प्रजातंत्र।
राज्यों की वृहत् जनसंख्या और क्षेत्र की विशालता के कारण वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी राज्यों में प्रतिनिध्यात्मक प्रजातांत्रिक शासन-व्यवस्था ही प्रचलित है। इस शासन-व्यवस्था के अंतर्गत जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और इस प्रतिनिधि के द्वारा शासन कार्य किया जाता है। जनता अपने द्वारा अपने-अपने प्रतिनिधियों के निर्वाचन और प्रतिनिधियों द्वारा शासन-व्यवस्था के संचालन की संपूर्ण प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए राजनीतिक दलों का अस्तित्व अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त प्रजातांत्रिक शासन-व्यवस्था लोकमत पर आधारित होती है और राजनीतिक दल लोकमत के निर्माण और उसकी अभिव्यक्त के सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन होते हैं।
मौकाइवर ने ठीक कहा है कि, "बिना दलित संगठन के किसी सिद्धांत का एक होकर प्रकाशन नहीं हो सकता, किसी भी नीति का क्रमबद्ध विकास नहीं हो सकता, संसदीय चुनावों की वैधता व्यवस्था नहीं हो सकती और ना ऐसी माननीय संस्था की व्यवस्था ही हो सकती है, जिसके द्वारा कोई भी दिल शक्ति प्राप्त और स्थिर रहता है। "इसी प्रकार 22 ने लिखा है कि, "राजनीतिक दल अनिवार्य है और कोई भी बड़ा स्वतंत्र देश उसके बिना नहीं रह सकता है। किसी व्यक्ति ने यह बताया कि प्रजातंत्र उनके बिना कैसे चल सकता है। ये मतदाताओं के समूह की अराजकता में से व्यवस्था उत्पन्न करते हैं। यदि दल कुछ बुराइयां उत्पन्न करते हैं तो वे दूसरी ओर बुराइयों को दूर या कम भी करते हैं।"
साधारणतया एक देश के विधान या कानूनों के अंतर्गत राजनीतिक दलों का उल्लेख नहीं होता है, किंतु व्यवहार में राजनीतिक दलों का अस्तित्व भी उतना ही आवश्यक और उपयोगी होता है, जितना कि विधान या कानून। अमेरिकी संविधान-निर्माता अपने देश के किसी भी रूप में राजनीतिक दलों को पनपने नहीं देना चाहते थे, लेकिन संविधान को लागू किए जाने के साथ ही दलित संगठन अमेरिकी राजनीतिक जीवन की एक प्रमुख विशेषता बन गए।
प्रजातांत्रिय शासन के अंतर्गत केवल शासन दल का ही नहीं, वरन् विरोध दल का भी महत्व होता है। विरोध दल शासन करने वाले राजनीतिक दल को मर्यादित तथा नियंत्रित करने का कार्य करता है। इस प्रकार या कहा जा सकता है कि आधुनिक राजनीतिक जीवन के लिए दलित संगठनों का बड़ा महत्व है और उसके बिना लोकतंत्र की सफलता संभव ही नहीं है। बर्क के शब्दों में कहा जा सकता है कि "दलीय प्रणाली चाहे पूर्ण रूप से भले के लिए हो या बुरे के लिए, प्रजातंत्रात्मक शासन-व्यवस्था के लिए अपरिहार्य है।"
राजनीतिक दल की परिभाषाएं
( Definitions of political parties )
मानव एक विवेकशील प्राणी है और मानव की इस विवेक शीलता के कारण ही प्रकार की समस्याओं के संबंध में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा विभिन्न प्रकार के विचार किया जाता है। विचार कि इस भिन्नता के साथ-ही-साथ अनेक व्यक्तियों के आधारभूत बातों के संबंध में विचारों की सभ्यता भी पाई जाती है। विचारों की समांतर रखने वाले यह व्यक्ति अपनी सामान्य विचारधारा के आधार पर शासन शक्ति प्राप्त करने और अपनी नीति को कार्य रूप में परिणत करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं और इस उद्देश्य को दृष्टि में रखकर उनके द्वारा जिन संगठनों का निर्माण किया जाता है, उन्हें ही राजनीतिक दल कहा जाता है। राजनीतिक दल की परिभाषा के संबंध में विभिन्न विचारों ने अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं-
(1) एडमण्ड बकृ के मतानुसार, "राजनीतिक दल ऐसे लोगों का समूह होता है जो किसी ऐसे सिद्धांत के आधार पर जिस पर वे एक मत हो, अपने समाप्त प्रयत्नों द्वारा जनता के हित में कार्य करने के लिए एकता में बंधे होते हैं।"
(2) गैटल के अनुसार, "राजनीतिक दल न्यूनाधिक संगठित उन नागरिकों का समूह होता है जो राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं और जिनका उद्देश्य अपने मतदान बल प्रयोग द्वारा सरकार पर नियंत्रण करना वह अपनी सामान्य नीतियों को क्रियान्वित करना होता है।"
(3) गिलक्राइस्ट के शब्दों में, "राजनीतिक दल की परिभाषा उन नागरिकों के संगठित समूह के रूप में की जा सकती है जो राजनीतिक रूप से एक विचार के हो और उन्हें एक राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य कर सरकार पर नियंत्रण करना चाहते हो।"
(4) इसी प्रकार मैकाइवर के शब्दों में, "राजनीतिक दल एक ऐसा समुदाय है जो किसी ऐसे सिद्धांत अथवा ऐसी नीति के समर्थन के लिए संगठित हुआ है, जिससे वह वैधानिक साधनों से सरकार का आधार बनाना चाहता हो।"
राजनीतिक दल के आवश्यक तत्व
( Essential elements of political )
एडमण्ड बकृ, गैटल, गिलक्राइस्ट, मैकाइवर, आदि विद्वानों द्वारा राजनीतिक दल की जो परिभाषाएं दी गई हैं, उनके आधार पर इन दलों के निम्नलिखित आवश्यक तत्व बताए जा सकते हैं-
1. संगठन - राजनीतिक दल का प्रथम आवश्यक तत्व यह है कि वे संगठित होने चाहिए। आधारभूत समस्याओं के संबंध में एक ही प्रकार का विचार रखने वाले व्यक्ति जब तक संगठित ना हो उस समय तक उन्हें राजनीतिक दल नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक दलों की शक्ति उनके संगठन पर निर्भर करती है और संगठन के आधार पर ही उनके द्वारा शासन शक्ति प्राप्त कर अपनी नीति को कार्य रूप में परिणत करने का प्रयत्न किया जा सकता है।
2. सामान्य सिद्धांतों की एकता - राजनीतिक दल का संगठित रूप से कार्य करना उसी समय संभव है, जबकि राजनीतिक दल के सदस्य किन्ही समस्त सामान्य सिद्धांतों के संबंध में एक ही प्रकार का विचार रखते हों। मूल प्रश्नों पर इस प्रकार की एक माता के अभाव में वे परस्पर सहयोग नहीं कर सकते। यदि कुछ व्यक्ति अपने किन्हीं विशेष स्वार्थों के आधार पर संगठन की स्थापना कर भी लेते हैं, तो इस प्रकार के सिद्धांतहीन संगठनों को राजनीतिक दल ना कहकर गुट ही कहा जा सकता है।
3. संवैधानिक साधनों में विश्वास - राजनीतिक दल के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी नीतियां विचार को कार्य रूप में परिणत करने के लिए संवैधानिक मार्ग का अनुसरण करें। मतदान और मतदान के निर्णय में उनका आवश्यक रूप से विश्वास होना चाहिए। गुप्त उपाय या सशस्त्र क्रांति जैसे असंवैधानिक साधनों में विश्वास रखने वाले संगठनों को राजनीतिक दल नहीं कहा जा सकता। उदाहरणार्थ, नाजी दल या फांसी दल राजनीतिक दल ना होकर क्रांतिकारी सैनिक संगठन थे।
4. शासन पर प्रभुत्व की इच्छा - राजनीतिक दल का तत्व यह होता है कि उनका उद्देश्य शासन पर प्रभुत्व स्थापित पर अपने विचारों और नीतियों को कार्य रूप में परिणित करना होता है। यदि कोई संगठन शासन के बाहर रहकर कार्य करना चाहता है, तो इसे राजनीतिक दल नहीं कहा जा सकता।
5. राष्ट्रीय हित - राजनीतिक दल के लिए एक आवश्यक है कि उनके द्वारा किसी विशेष जाति, धर्म या वर्ग के हित की को दृष्टि में रखकर नहीं, वरन् संपूर्ण राज्य के हित में दृष्टि में रखकर कार्य किया जाना चाहिए। बकृ के राजनीतिक दल की परिभाषा करते हुए उन्हें "राष्ट्रीय हित की वृद्धि के लिए संगठित राज्य राजनीतिक समुदाय" भी कहा है।
उपयुक्त तत्वों के आधार पर राजनीतिक दल की अपने शब्दों में परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि, "राजनीतिक दल आधारभूत समस्याओं के संबंध में विचार की एकता पर आधारित ऐसे संगठित समुदाय होते हैं जिनके द्वारा अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए केवल संवैधानिक साधनों को ही अपना कर शासन शक्ति पर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है और जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय हित में वृद्धि होता है।"
राजनीतिक दलों के कार्य
( Function of political parties )
राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दल अनेक प्रकार से सक्रिय रह सकता है। रॉबर्ट सी. बोन के अनुसार, राजनीतिक दल तीन प्रकार की भूमिका एक साथ निभाने की क्षमता रखते हैं। राजनीतिक दल की परिपथ के रूप में इन तीनों भूमिकाओं का प्रथकृ-प्रथकृ वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
1. मध्यवर्ती परिवर्तन के रूप में दल की भूमिका ( role of political parties as an intervening variable ) - इस प्रकार के दल सरकार जी तंत्र या राजनीतिक समाज के मध्य आदान-प्रदान की कड़ी का काम करता है। मध्यवर्ती परिवर्तन के रूप में दल की अग्र लिखित भूमिकाएं होती है-
(I) सत्ता में बने रहने के लिए या सत्ता में आने के लिए लोकमत की परख में लगा रहता है।
(ii) राजनीतिक व्यवस्था में उठने वाले मांगों को सरकार तक पहुंचाता है।
(iii) दल सरकार की नीतियों को अपनी समर्थकों वह आम जनता के लिए व्यवस्था करता है जो सरकार के कार्यों के बारे में जनता को समझाता है।
2. अश्रित परिवत्य के रूप में दल की भूमिका ( role of political parties as and dependent variable ) - राजनीतिक दल राजनीतिक व्यवस्था में कार्यरत रहते हैं। इसका कार्य सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पर्यावरण में ही निम्नलिखित प्रकार से संचालित होता है-
(I) पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुरूप अपने को ढाल ते हुए समाज की संपूर्ण समूह अवस्था के अनुकूल में योग देना।
(ii) समाज की संरचना व उप-व्यवस्थाओं में संवाद स्थापित करना।
(iii) राजनीतिक समाज की रचना व समाज के सांस्कृतिक प्रतिमान को प्रभावित करने वाली राजनीतिक प्रक्रिया को जोड़ना सरल करना और स्थिर बनाना।
3. स्वतंत्र परिवर्तन के रूप में दल की भूमिका ( Role of political parties as an independent variable ) - इस रूप में दल संपूर्ण समाज का नियामक बन जाता है। राजनीतिक दल सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था को नियंत्रण करने की व्यवस्था में होने के कारण इन दोनों से स्वतंत्र बन जाता है। वह विचारधारा कार्यक्रम की रूपरेखा के अनुसार न्यायोचित समाज की स्थापना करने के लिए समाज व सरकार दोनों का ही नियंत्रण, निर्देशक व निरीक्षक रहता है। दल की भूमिका अग्र लिखित प्रकार की रहती है-
(I) कार्यक्रम की क्रिया वित्तीय में आने वाली सभी प्रक्रियात्मक वासन आत्मक बाधाओं को दूर करना।
(ii) विचारधारा के अनुसार संपूर्ण संस्थागत व्यवस्थाओं को ढालना।
(iii) समाज व सरकार दोनों का निर्देशन करना व उन पर नियंत्रण करना।
पीटर एच. मर्कल ( Peter H. Merkel ) में राजनीतिक दल के कार्यों को इस प्रकार व्यक्त किया है-
(I) सरकार के लिए कार्यक्रमों और नीतियों का प्रजनन।
(ii) विभिन्न सरकारी कार्यालयों के लिए नेतृत्व कर्मियों की भर्ती और उसका चयन।
(iii) सरकारी अंगों का समय की और निमंत्रण।
(iv) समूह की मांगों को संतोष प्रदान करने और उसमें सामान जला कर सामाजिक एकता का विकास।
(v) विरोधी प्रति संगठन बनाना अथवा उच्च छेदन अर्थात या तो विरोधी दल के रूप में शक्ति संयुक्त करना या सत्तारूढ़ दल को अपदस्थ करके स्वयं सरकारी नियंत्रण प्राप्त करना।
(vi) अपने पक्ष में समर्थन अजीत करके और राजनीतिक समाजीकरण द्वारा व्यक्तियों में सामाजिक एकता लाना था तूने एक राजनीतिक समूह के रूप में परिवर्तित करना।
प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों का महत्व
( Importance of political parties in Democracy )
प्रजातांत्रिक प्रणाली वाले देशों में राजनीतिक दलों का विशेष महत्व है। प्रजातंत्र में जनता के प्रतिनिधियों को चुनने, सरकार बनाने तथा शासन चलाने में राजनीतिक दलों द्वारा महत्वपूर्ण योगदान दिया जाता है। प्रजातंत्र का मुख्य आधार यह राजनीतिक दल ही है। प्रजातंत्र में राजनीतिक दल के महत्व को बताते हुए लॉर्ड बा्इस ने कहा, राजनीतिक दल अनिवार्य हैं, कोई भी बड़ा स्वतंत्र देश उसके बिना नहीं रह सकता। किसी व्यक्ति ने यह नहीं बताया कि प्रजातंत्र उसके बिना कैसे चल सकता है।"
शासन को संगठित तथा व्यवस्थित बनाए रखने के लिए राजनीतिक दल अपरिहार्य है। यदि राजनीतिक दल नहीं होंगे तो संसद में कोई विरोध दल भी नहीं हो होगा, जो शासन की गलतियों को जनता के समक्ष स्पष्ट कर सकें। इससे सत्तारूढ़ दल के निरंकुश होने की संभावना बढ़ जाती है।
प्रजातंत्र के लिए आवश्यक जागरूक नागरिकों का निर्माण भी राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। जैसा कि बा्इस ने कहा, "लोकतंत्र में राजनीतिक दल अनिवार्य है। वे मतदाताओं की उदासीनता को नष्ट करने में सफल होते हैं और उनमें राजनीतिक चेतना उत्पन्न करते हैं।"
चुनाव के समय राजनीतिक दल ही अपने प्रत्याशी की योग्यता तथा अपने सिद्धांतों, नीतियों तथा कार्यक्रमों का प्रचार करते हैं तथा उन्हें जनता एक तक पहुंचते हैं। इससे जनता प्रत्येक उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करके अपनी पसंद के व्यक्ति को चुन सकती है। फाइनर के शब्दों में, "दलों के बिना मतदाता ऐसी असंभव नीतियों का अनुसरण करने लगेंगे, जो उन्हें शक्तिहीन या विनाशकारी बना देगी और जिनसे राजनीतिक तंत्र ध्वस्त हो जाएगा।"
प्रजातांत्रिक देश के नागरिकों की सुरक्षा की दृष्टि में भी राजनीतिक दल महत्वपूर्ण है, क्योंकि विरोधी दल की निरंकुशता से सुरक्षित रखते हैं। इसलिए लॉस्की ने कहा है, "राजनीतिक दल देश के अधिनायकवाद ने हमारी रक्षा करने में सर्वश्रेष्ठ कवच है।"
इस प्रकार प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों का अत्यधिक महत्व है। मैकाइवर का कथन है, "बिना राजनीतिक दल के ना तो उसके नीति निर्धारित की जा सकती है, न संवैधानिक आधार पर विधान मंडलों के लिए निर्वाचन की उचित व्यवस्था की जा सकती है, ना ही बिना राजनीतिक दलों में ऐसी महान राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना की जा सकती है, जिसके द्वारा दलों को सकता और अधिकार प्राप्त होते हैं।" राजनीतिक दलों के अत्यधिक महत्व के कारण ही उन्हें दृश्य सरकार तथा शासन का चतुर्थ कहा जाता है।
प्रजातांत्रिक राजनीतिक दलों के कार्य
( Function of Democratic political parties )
न्यूमैन के प्रजातांत्रिक राजनीतिक दलों के मुख्य कार्य इस प्रकार बतलाए हैं-
1.अस्त-व्यस्त एवं विक्रय जनमत को संगठित करना।
2. नागरिकों को राजनीतिक उत्तरदायित्व की दृष्टि में शिक्षित बनाना।
3. शासन और जनमत को जोड़ने वाली कड़ी का प्रतिनिधित्व करना।
4.नेताओं का चुनाव।
न्यूमैन के अनुसार, प्रजातांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों के कार्य निरंकुश व सर्वाधिक शासन-व्यवस्थाओं में अनेक कार्यों के समान नहीं हो सकते। सर्वाधिकारी शासकों में दल का एकाधिकार होने के कारण न केवल उसकी कार्य-शैली में अंतर आता है, वरन् उसकी कार्यक्षमता भी सीमा के कारण कार्य में भिन्न हो जाते हैं।
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक दल
1. नागरिकों की राजनीतिक उत्तरदायित्व को दृष्टि से शिक्षित बनाने,
2. अस्त-व्यस्त एवं बिक्री जन इच्छा को संगठित करने,
3. शासन और जनमत को जोड़ने वाली कड़ी का प्रतिनिधित्व करने,
4. नेताओं के चुनाव का कार्य करने है।
न्यूमैन के अनुसार, अधिनायकवादी दल बाहर से लोकतांत्रिक दलों से भी नहीं दिखाई देते हैं।
उनके सिद्धांत और कार्य लोकतांत्रिक की धारणा लिए रहते हैं।
सर्वाधिकारी दल
1. व्यक्तियों पर एकरूपता का लादना,
2. इच्छा पर एक आशा नियंत्रण,
3. सामा ज्वार राज्य के मध्य संपर्क के लिए केवल मात्र ऊपर की ओर से इकतरफा प्रचार व निदर्श,
4. नेताओं के चुनाव का कार्य करते हैं।
सर्वाधिकारी दल मोटे तौर पर वही कार्य करते हैं, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में दलों द्वारा संपादित होते हैं। अंतर केवल कार्य-विधि, कार्य-क्षमता तक कार्य-उद्देश्यों का होता है।
राजनीतिक दल निम्नलिखित कार्यों को संपन्न करते हैं-
1. सार्वभौम नीतियों का निर्माण ( To make Universal Policies ) - राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए लोकप्रिय सिद्धांतों पर आधारित नीतियों का निर्माण करते हैं। विभिन्न प्रकार के विचारों और योजनाओं का जनता में प्रचार करते हैं। अतः राजनीतिक दलों को 'विचार के दलाल' ( Broker of idea ) कहा जा सकता है।
2. जनता का नेतृत्व ( To Represent the People ) - सभी साधारण व्यक्तियों के लिए यह संभव नहीं कि वे संपूर्ण राष्ट्र की समस्याएं को समझ सके और उन्हें समाधान के उपाय निकाल सकें। राजनीतिक दल जन-संपर्क में जनसभाओं प्रचार माध्यमों, जैसे-रेडियो, टेलीविजन, समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं के माध्यम से करते हैं। न्यायालय के जिस प्रकार वकील अपने तथ्यों को प्रस्तुत कर न्यायधीश के सत्य जानने का प्रयत्न करते हैं, उसी प्रकार राजनीतिक दल भी अपने विचार जनता के समक्ष रखते हैं और यह अवसर प्रदान करते हैं कि जनता अपना सही मार्ग चुने ले। इसलिए अतिरिक्त विधानमंडलों में शासन दल के सदस्य जनता की इच्छाओं और भावनाओं का सच्चा प्रतिनिधित्व करते हैं।
3. जनमत का निर्माण ( To make Public Opinion ) - राजनीतिक दलों का यह परम कर्तव्य है कि वह अपनी नीतियों एवं कार्यों को जनता के समक्ष प्रस्तुत करके जनमत जानने और संगठित करने का प्रयत्न करें। प्रत्येक दल अपने पक्ष में जनमत को रखने की सोचता है। इससे जनमत संगठित होते हैं। न्यूमैन के शब्दों, "में राजनीतिक दलों का प्रमुख कार्य व्यवस्था वित्त जनमत को संगठित करना होता है।••••••• वे विचारों के दलाल होते हैं तथा निरंतर रूप से दल के सिद्धांतों को स्पष्ट एवं उनकी व्यवस्था करते रहते हैं। वह सामाजिक हित-समूहों के प्रतिनिधि होते हैं तथा व्यक्तिगत एवं सामूहिक के मध्य अंतर को कम करते हैं।"
4. चुनाव का संचालन ( To run the Elections ) - आधुनिक युग में सर्वभोम व्यवस्थापक मताधिकार के कारण मतदाताओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। ऐसी स्थिति में चुनाव का संचालन बड़ा जटिल हो गया है। राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवार प्रत्येक क्षेत्र में खड़ा करते हैं और चुनाव का संचालन करके अपने उम्मीदवारों को विजई बनाने का प्रयास करते हैं। साधारण जनता के लिए प्रत्येक व्यक्ति के विचारों, चरित्र एवं क्षमताओं का ज्ञान प्राप्त करना बड़ा कठिन है, लेकिन एक दल के समृद्ध होने पर इस प्रकार की कोई समस्या नहीं रहती। दल की विचारधाराएं एवं नीतियां स्पष्ट होती है। डॉ. फाइनल के शब्दों में, "राजनीतिक दल बिना निर्वाचन या तो निरंतर एहसास हो जाएगा या उसके द्वारा असंभव नीतियों को अपनाकर राजनीतिक तंत्र को नष्ट कर दिया जाएगा।"
5. शासन का संचालन व आलोचना ( To Run and Criticise the Government ) - प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था में बहुमत प्राप्त दल ही सरकार है। सरकार के विभिन्न अंगों ( कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका ) में उसी का नियंत्रण रहता है। ( अध्यक्षात्मक शासन में ऐसे भी हो सकते हैं कि कार्यपालिका किसी दल का व्यवस्था पिक में किसी दूसरे दल का बहुमत हो )। समस्त शासन का कार्यभार इसी राजनीतिक दल पर होता है। विरोध दल भी प्रजातंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रशासन की नीतियों की आलोचना करता है तथा जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करता है। इससे शासन दल की निरंकुशता पर प्रतिबंध लगता है। लोकतंत्र की सफलता के लिए एक सशक्त विरोधी दल का अस्तित्व आशय है। प्रो. मैरियम के शब्दों में, "सत्तारूढ़ दल का कार्य अधिकारी वर्ग का चुनाव करना, लेकिन का लोक नीति का निर्धारण करना तथा सरकार का संचालन करना है। विरोधी दल का कार्य उसी आलोचना करना, राजनीतिक शिक्षण तथा व्यक्ति एवं सरकार के मध्य एक बड़ी कार्यवाही करना होता है।"
6. सरकार तथा जनता की मदद से का कार्य करना ( To work as mediater between Government and public ) - राजनीतिक दल सरकार और जनता के मध्य मध्यस्थता करते हैं। वे जनता की कठिनाइयां, समस्याएं एवं आकांक्षाएं सरकार के समक्ष रखते हैं और सरकार की नीतियों एवं योजनाओं की सूचना जनता को देते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल सरकार और जनता के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
7. सरकार के विभिन्न अंगों में सामंजस्य ( Adjustment among the department of the government ) - संपूर्ण सरकार एक शावक की भांति होती है। अतः उसके अंगों व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका की में सामंजस्य होना आवश्यक है। संसदीय शासन में चौकी कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका दोनों में ही एक दल का प्रभुत्व होता है इसलिए दल इन में सामंजस्य एवं सहयोग पैदा करने में पूर्णता सफल हो जाता है। अध्याय क्षमता शासन में सरकार के अंगों में शक्ति पृथक्करण होते हैं। इसके बावजूद भी राजनीतिक दल दोनों के सामंजस्य स्थापित करता है। यह कहना अति अति शोभ भूलना होगा की अध्यक्षता शासन का दल ही वह कारण है जो साल में सामंजस्य स्थापित करता है।
8. दलीय कार्य ( Party functions ) - अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने दल का सदस्य बनाते हैं। मतदाताओं की सूची तैयार करते हैं, दल के लिए चंदा इकट्ठा करते हैं, सार्वजनिक सभाओं का आयोजन करते हैं। देश के प्रत्येक भाग में अपने दल की शाखाएं खोलते हैं जिसके मध्य में वे जनता की स्थानीय समस्याओं को जानते हैं तथा समाधान करते हैं। रैली आयोजित करना, जुलूस निकालना, सत्याग्रह द्वारा विरोध करना आदि कार्य भी राजनीतिक दल करते हैं।
9. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्य ( Social and Cultural Function ) - राजनीतिक दलों के मुख्य कार्य राजनीति के होते हैं, परंतु जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए कभी-कभी वे सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्य भी करते हैं। बाढ़, सूखा, महामारी एवं अन्य संकटों के समय दल अपने स्वयं-सेवकों को सहायतार्थ भेजता है। वह छुआछूत रंग-भेद, दहेज प्रथा आदि सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध प्रचार करते हैं तथा सफाई, विकलांगों की सहायता तथा अन्य समाज-सुधार संबंधी कार्य भी करते हैं। प्रत्येक देश के दल इस प्रकार के कार्य आशय रूप में करते हैं।
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मुझे विश्वास है दोस्तों की आपको यह पोस्ट 1. राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की भूमिका का वर्णन कीजिए? ( Explain the role of Women in political system. ) / 2. राजनीतिक दल के कार्य एवं महत्व की व्याख्या कीजिए ? ( Describe the function and importance of political parties. ) बहुत पसंद आया होगा। तो मैं आप सभी लोगों से बस यहीं गुजारिश करूंगा की इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों को शेयर करे।🙏🙏🙏🙏
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