संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की विशेषताएं / संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम : अर्थ एवं परिभाषाएं / ( Silent features of USA constitution / Sanrachnatmak prakaryatmak upagam:Arth AVN paribhashaen )

 संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की विशेषताएं / संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम : अर्थ एवं परिभाषाएं / ( Silent features of USA constitution /  Sanrachnatmak prakaryatmak upagam:Arth AVN paribhashaen )



संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की विशेषताएं

( Silent features off USA constitution )



फ्रेंच राजनीतिशास्त्री डी. टाकविले का कथन है कि "संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान एक आदर्श प्रजातंत्र आत्मक राज्य की स्थापना करता है।" यह संविधान सरल और संक्षिप्त है इसमें आवश्यक स्पष्टता और निश्चितता भी है। ग्लैडस्टन ने एक बार कहा था," अमेरिकी संविधान मानव जाति की आवश्यकता तथा मस्तिष्क से उत्पन्न किसी निश्चित समय की सर्वाधिक आश्चर्यपूर्ण कृति है।" संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है-


(1) निर्मित और लिखित संविधान - संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान का निर्माण 1787ई. में हुआ था और यह विश्व का प्रथम लिखित संविधान है। ब्रिटिश संविधान की भांति इसका क्रमिक विकास नहीं हुआ, वरन् संविधान के मूल ढांचे का फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा निर्माण किया गया है। यह एक निश्चित समय की कृति है। यद्यपि न्यायिक व्याख्याओं, प्रशासनिक कार्यों और परंपराओं के आधार पर संविधान का निरंतर विकास होता रहा है, किंतु संविधान की अधिकांश धाराएं और उनका मूल ढांचा लिपिबंध्द है, अमेरिका ने लिखित संविधान की उपयोगिता स्पष्ट कर विश्व के अन्य राज्यों को इसे अपनाने की ओर प्रेरित किया है। बाइस‌ के अनुसार," अमेरिका का संविधान विश्व के लिखित संविधान में सर्वोच्च है।"


(2) सर्वाधिक संक्षिप्त संविधान - अमेरिकी संविधान विश्व के लिखित संविधानों में सर्वाधिक संक्षिप्त पृलेख है। मुनरो के अनुसार, "संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में केवल 4,000 शब्द है, जो 10 या 12 पृष्ठों में मुद्रित है और जिन्हें आधे घंटे में पढ़ा जा सकता है।" अमेरिकी संविधान में केवल 7 अनुच्छेद है, जबकि ऑस्ट्रेलिया के संविधान में 128 अनुच्छेद है, कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद है, दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 153 अनुच्छेद है तथा भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं।


संविधान - निर्माता इस बात से परिचित थे है कि वे भविष्य की समस्त व्यवस्था के संबंध में ठीक प्रकार से नहीं सोच सकते, इसलिए उन्होंने सभी बातों के संबंध में स्वयं व्यवस्था करके के बजाय संविधान का केवल मूल ढांचा तैयार किया और उसने रेखाएं भरने का कार्य आने वाले समय पर छोड़ दिया। क्लॉडियस जॉनसन लिखते हैं," संविधान का ढांचा बनाने वालों ने हमें अच्छा श्रीगणेश कराया, परंतु आवश्यकतावश उन्होंने शेष बातों को भविष्य पर छोड़ दिया।" संविधान की अत्यधिक संक्षिप्त ता के कारण अनेक आवश्यक बातों का संविधान में उल्लेख होने से रह गया है। उदाहरणार्थ, बैंकों की व्यवस्था, विधि और बजट निर्माण, कृषि, श्रम, उद्योग के संचालन और शिक्षा, आदि विषयों के संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है। संविधान में भी यह नहीं बताया गया है कि कांग्रेस के दोनों सदनों के अध्यक्षों की शक्तियां क्या होंगी यह दोनों सदनों के विवाद उत्पन्न होने पर उसका निर्णय कैसे किया जाएगा?

 संविधान की संक्षिप्तता का उसके आगामी विकास पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इसका एक प्रभाव विभिन्न प्रकार के संवैधानिक विवादों का उदय और परिणामस्वरूप न्यायपालिका के महत्व में वृद्धि हुआ है। संविधान की संक्षिप्तता के कुछ अन्य परिणाम हैं - निहित शक्तियों का सिद्धांत और लाभ प्रदान करने की प्रणाली (Spoils System ), आदि।


(3)  लोकप्रिय संप्रभुता पर आधारित संविधान - अमेरिका के संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है। 1773ई. में 'परिसंघ के विधान' में इस सिद्धांत का अभाव था, क्योंकि उसमें संप्रभुता राज्यों में निहित थी, लेकिन वर्तमान संविधान में इस त्रुटि को दूर कर दिया गया है। संविधान की प्रस्तावना में घोषणा की गई है कि "हम संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग अधिक शक्तिशाली संघ बनाने, न्याय की स्थापना, आंतरिक शांति की प्राप्ति सामान्य प्रतिरक्षा की व्यवस्था और सार्वजनिक कल्याण में बढ़ोतरी करने तथा अपने और अपनी संतान हेतु स्वतंत्रता के वरदान को सुरक्षित रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के इस संविधान को अपनाते हैं। अमेरिका का संविधान स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का प्रतीक है। संविधान का निर्माण जन-प्रतिनिधियों द्वारा किया गया है और संविधान के द्वारा अंतिम सत्ता जनता को ही प्रदान की गई है।


(4) संविधान की सर्वोच्चता - फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा निर्मित प्रलेख संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च कानून है और राष्ट्रपति, कांग्रेस, सर्वोच्च न्यायालय तथा संघ की इकाइयां सब इसके अधीन है और किसी के भी द्वारा इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। अमेरिका के अनुच्छेद 6 में कहा गया है -" यह संविधान और इसके अनुसार बनाए गए सभी कानून तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के प्राधिकार के अधीन की गई अथवा भविष्य में की जाने वाली सन्धियां, देश का सर्वोच्च कानून होगी और प्रत्येक राज्य के न्यायाधीश उसमें बाध्य होंगे। किसी भी राज्य के संविधान अथवा कानून की कोई भी बात जो इस संविधान के विरुद्ध होगी, अवैध समझी जाएगी।" हे्यर लिखते हैं कि "व्यवहार में भी अमेरिकी अपने संविधान के प्रति जितना सम्मान रखते हैं, उतना अन्य किसी भी देश के नागरिक अपने संविधान के प्रति नहीं रखते।"


(5) कठोर संविधान - संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान कठोर है, अर्थात अमेरिकी कांग्रेस के द्वारा जिस प्रक्रिया के आधार पर सामान्य कानूनों का निर्माण किया जाता है उसी प्रक्रिया के आधार पर संवैधानिक कानूनों का निर्माण अर्थात संविधान के संशोधन का कार्य नहीं किया जा सकता। संविधानिक संशोधन के लिए साधारण कानूनों के निर्माण के विभिन्न प्रक्रिया को अपनाया जाना आवश्यक है। संघात्मक शासन व्यवस्था स्थापित किए जाने के कारण अमेरिका के लिए कठोर संविधान को अपनाना आवश्यक भी था। अमेरिकी संविधान ना केवल परिभाषिक दृष्टि से कठोर है, वरन् व्यवहार में भी संविधान में परिवर्तन किया जाना बहुत अधिक कठिन है। इसी कारण लगभग 218 वर्षों के संविधानिक इतिहास में संविधान में केवल 27 संशोधन हुए और इनमें भी प्रथम 10 संशोधन तो एक साथ संविधान निर्माण के तुरंत बाद नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करने हेतु प्रस्तावित किए गए थे।



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      आलमंड एवं पावेल की राजनीतिक व्यवस्था उपागम का वर्णन कीजिए?


संरचनात्मक - प्रकाया्त्मक उपागम



राजनीति के अध्ययन का संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक उपागम राजनीतिक विज्ञान से नितांत नया नहीं है। उसका मूल हमें प्लेटो तथा अरस्तु की रचनाओं में मिलता है। उन्होंने ऐसे विशिष्ट कार्यों की चर्चा की, जिन्होंने उनकी समझ में, किसी राजनीतिक व्यवस्था को स्वयं अपनों को जीवित रखने हेतु संपादित करना चाहिए। उसने इस युग में सबसे पहले मानव मानवशास्त्रीयों और समाजशास्त्रियों के संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक उपागम का निवास विकास किया।

 मानवशास्त्र के रेडक्लिफ ब्राउन तथा बी. मैलिनोवस्की ने अपने अन्वेषणों में इस उपागम का प्रयोग किया।




संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम : अर्थ एवं परिभाषाएं

( Sanrachnatmak prakaryatmak upagam:Arth AVN paribhashaen )


संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक  उपागम राजनीतिशास्त्र को समाजशास्त्र की देन है। तुलनात्मक राजनीतिक में इस उपागम की लोकप्रियता व्यवस्था विश्लेषण के बाद ही पति तथा विकसित हुई। कई विद्वानों ने इस उपागम की व्यवस्था विश्लेषण का एक ही रूप माना है वस्तुतः संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक उपागम एक तरफ तो 'इस्टन' द्वारा संयुक्त व्यवस्थायी विश्लेषण की व्यवस्था में आई कमियों को दूर करने के लिए और दूसरी तरफ तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा को अधिक यथार्थवादी ढंग से प्रयुक्त करने के लिए आवश्यक माना गया। सामान्य दृष्टि से देखा जाए तो इसकी आवश्यकता उन सब तथ्यों से स्पष्ट की जा सकती है, जिसने व्यवस्था विश्लेषण की राजनीतिक विश्लेषणों में आवश्यकता महसूस की गई थी।


संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक विश्लेषण दो पत्ययों का प्रयोग पर आधारित है। प्रथम प्रत्यय संचार संरचना का दूसरा प्रत्यय प्रक्रिया कार्य है अतः संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक उपागम का अर्थ इन दो प्रतियों का अर्थ करके समझा जा सकता है। प्रकायृ एक व्यापक शब्द है जिनकी कई अर्थ है।


(1) एक विद्वान के अनुसार, "अपने वृहत्तर रूप में प्रकायृवाद का साधारण-सा अर्थ है कि राजनीतिशास्त्री किसी तथ्य अथवा घटना का विश्लेषण करते समय अन्य बातों के अलावा उनके पृकार्यों का, जो उस तथ्य द्वारा निष्पादित होते हैं, ध्यान रखेगा।"

(2) आरेन यंग ने इसका अर्थ इन शब्दों में किया है," प्रकायृ, क्रिया प्रतिमान का व्यवस्था के लिए, जिससे यह परिचालित होती है, एक वस्तुनिष्ठ परिमाण है।

(3) मटृन के अनुसार, "प्रकायृ प्रवेक्षित परिमाण है जो किसी व्यवस्था में अनुकूलन या पुनः समायोजन बनाए रखते हैं।

(4) रॉबर्ट सी.बोर्न के अनुसार, "एक पृकार्य व्यवस्था को बनाए रखने और उस को विकसित करने के लिए किया जाने वाला ऐसा क्रिया प्रतिमान है जो नियमित रूप से होता रहता है।"


संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक उपागम की उपयोगिता का गुण

          (Usefulness and Advantages)

          

संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक उपागम राजनीतिक व्यवस्था

 विश्लेषण का एक विशिष्ट दृष्टिकोण है। इस दृष्टिकोण की तुलनात्मक राजनीति को विशेष देन रही है। संपेक्ष में इसकी प्रमुख गुण प्रकार है-

(1)  यह सुसंगत और ऐसा समगृवादी सिद्धांत प्रस्तुत करता है, जिसने राजनीतिक व्यवस्था के सभी पहलुओं से संबंधित स्पष्ट परिकल्पनाएं निकाली या प्रस्थापित की जा सकती है।

 (2) यह राजनीतिक व्यवस्थाओं के सामान्य सिद्धांत के अंततः निर्माण की संभावनाएं प्रस्तुत करता है।

 

(3) यह तुलनात्मक विश्लेषण ओं को राजनीतिक, सामाजिक अनुरक्षणों की अन्तः संबंध्दताओं को पेचीदगियों  के प्रति दिनों के चित्रों के प्रति संवेदनशील बनाता है।


(4) यह उपागम राजनीतिक अनुलक्षण के परिवेश के रुप में संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था की ओर आकर्षित करता है।


 (5) यह राजनीतिक व्यवस्था की कार्य-शैली और परिचालनता में प्रवेश संभव बनाता है।

 (6) यह राजनीतिक विश्लेषण के अनेक विचारबंधु प्रस्तुत करता है। इसमें हम राजनीतिक व्यवस्थाओं को उपव्रयवस्था में या संरचनात्मक-प्रकाया्त्मक पृवर्गों के आधार पर विश्लेषण कर सकते हैं।

 (7)  इस उपागम से यथार्थवादी निष्कर्ष निकालने और राजनीतिक व्यवस्थाओं की गत्यात्मक शक्तियों को समझने में सहायता मिलती है।



संरचनात्मक-प्रकाया्वाद की आलोचना

                  ( Criticisms )

 संरचनात्मक-प्रकाया्वाद की आलोचना निम्नलिखित प्रकार से की गई है-

(1) प्रायः समस्त प्रकायृवादियों में यथास्थितिवाद, स्थायित्व और संतुलन जैसी अनुदारवादी पूर्व-धारणाएं पाई जाती है।

(2) यंग ने प्रकार्यवादियों की आलोचना करते हुए कहा है कि उनमें शाश्वत प्रकार्यवादिता का दोष पाया जाता है

(3) इस उपागम में नियंत्रण शक्ति, नीति-निर्माण, प्रभाव आदि दलों के विश्लेषण की समर्थ नहीं है।

(4) इस उपागम में ने केवल संधारणात्मक पक्ष पर ही बल दिया है जिससे उसमें माननीय तत्वों का समावेश हो गया है।

(5) इस सिद्धांत का प्रयोग किए जाने के पश्चात किसी सामान्य सिद्धांत के विकास के संबंध में कहना केवल भूताथृ निर्माण से है। इसका कारण यह है कि इस सिद्धांत का अधिग्रहण तो पहले ही किया जा चुका है।

(6) इस उपागम के संशोध्यवादिता स्पष्ट होती है।


(7) वास्तविकता में व्यवस्था अनेक विकल्पों को स्वयं बनाए रखनी है किसी विशिष्ट प्रकार को अनिवार्य प्रकार स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

(8) यंग ने कहा है कि प्रक्रियात्मक अनिवार्यताओं की पूर्वधारणा ने इसे यथास्थितिवाद बना दिया है।



                मूल्यांकन ( Evaluation )

                

उपयुक्त कमियों के होते हुए भीसंरचनात्मक-प्रकायृवाद सर्वाधिक लोकप्रिय और व्यवहार में आने वाले उपागम का मूल्यांकन अगृलिखित प्रकार से किया जा सकता है-


(1) वह इस उपागम ने राजनीतिक घटनाओं, आंकड़ों, परिस्थितियों तथा प्रक्रियाओं के अध्ययन के प्रबंधकीय संवर्ग प्रस्तुत किए हैं।

(2) इस उपागम के कारण एक न्यूनतम प्रक्रियाओं की सूची को मानवीकृत करने से राजनीतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन संभव हो सकता है।

(3) उपागम में समाज के विभिन्न तत्वों की आत्मनिर्भरता पर ध्यान आकर्षित किया है। इसके कारण अंतनिर्भरता तथा अंतः क्रियाओं पर निमंत्रण नियंत्रण करने वाले नियमों की रोज और उसका अध्ययन किया जाने लगा है।

(4) इस उपागम ने विश्लेषणात्मक अनुभव तथा उग्र व्यक्तिवाद के लिए प्रतिबल का कार्य निष्पादित किया है।

(5) इस उपागम ने वर्तमान समस्याओं की ओर अध्ययनकर्ताओं का ध्यान खींचा है।


(6) इस उपागम ने इस सत्य को स्पष्ट कर दिया है कि समाज मशीन मात्र ना होकर उससे कुछ अधिक है। कतीपय आलोचकों ने संचारआत्मक प्रक्रियावादियों की आलोचना यथास्थितिवादी तथा अनुदारवादी कहकर की है, लेकिन वास्तविकता यह है कि वे ना तो यथाशक्तिवादी है और ना रूढ़ीवादी।

 अब प्रकार्यवादी भी अपने दोषों के प्रति सजग हो गए हैं। उन्होंने अपनी सीमाओं, भ्रांतियों और त्रुटियों को जाना लिया है। इसका एक उदाहरण आमण्भ है। उन्होंने 1965 ई.में सामर्थ्य तथा व्यवस्था साधारण एवं अनुकूलन के संवर्ग जोड़े है। उसने राजनीतिक परिवर्तन की व्यवस्था करने का प्रयास किया है।


निष्कर्ष - निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रकार्यवाद भले ही सिद्धांत ना हो अथवा उसमें पूर्व कथन तथा नियंत्रण-शक्ति प्रदान करके करने का प्रभाव न हो, तथापि यह स्वीकार करना होगा कि उसने तुलनात्मक विश्लेषण को व्यापक, अधिक यथार्थवादी और परिशुद्ध बनाया है। इस उपागम ने अनेक महत्वपूर्ण अवधारणाएं, मानववीकृत शब्दावली एवं आनुभविक विचारबंद प्रस्तुत किए हैं।






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                            जय श्री राम


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